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(६०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। हिन्दीमें इसे सफेद चन्दन, फारसी में सपेद सन्दल तथा अंग्रेजीमें Sandal wood कहते हैं।
उत्तम चन्दन वह होता है जो स्वादसे तिक्त हो, घिसनेपर पीत निकले छेदन करनेपर लाल निकले,ऊपरसे सफेद हो तथा ग्रंथि और कोटरीयुक्त हो । चन्दन--शीतन, रूक्ष, तिक्त, पालाद करनेवाला, हलका तथा श्रम, शोष, विष, कफ, तृष्णा, पित्त तथा रुधिरके विकारोंको नष्ट करता है॥११.-१३॥
हरिचन्दनम् । कलंबकं तु कालीय पीताभं हरिचन्दनम् ॥ १४ ॥ हरिप्रियं कालसारं तथा कालानुसार्यकम् । कालीयकं रक्तगुणं विशेषाद्व्यंगनाशनम् ॥ १५ ॥ कलम्बक,कालीय, पीताभ,हरिचन्दन, हरिप्रिय,काल तार तथा कालासार्थक यह पीत चन्दनके नाम हैं। पीत चन्दनके गुण रक्तचन्दनके ही समान हैं, किन्तु यह विशेष करके व्यंग (छाई) को नष्ट करता है॥ १४ ॥ १५॥
रक्तचन्दनम् रक्तचन्दनमाख्यातं रक्तांग क्षुद्रचन्दनम् । तिलपर्णी रक्तसारं तत्प्रवालफलं स्मृतम् ॥१६॥ रक्तं शीतं गुरु स्वादुच्छदि तृष्णास्रपित्तहत् । तितं नेत्रहितं वृष्यं ज्वरव्रणविषापहम् ॥ १७॥ रक्तचन्दन, रक्तांग, शुदचन्दन, तितपर्णी, रक्त तार तथा प्रवालफल यह रक्तचन्दनके संस्कृत नाम हैं। हिन्दी में इसे नाल वन्दन, फारसीमें संदलेरख और अंग्रेजी में इसे Red Sandel wood कहते हैं। . लालचन्दन-शीतल,भारी, मधुर, तिक्त नेवहितकारी,वीर्यवर्द्धक तथा