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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.
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( ३९ ) नाम हैं, हिन्दी में इसे कूठ, फारसीमें कोश्त और अंग्रेजीमें Castor root कहते हैं ।
कूठ - गरम, कटु, मधुर वीर्यपर्द्धक, तिक्त, हलका तथा वात, रुधिरविकार, विसर्प, कास, कुष्ठ और कफको नष्ट करता है ॥ १७५ ॥ १७६ ॥
पुष्करमूलम् ।
उक्तं पुष्करमूलं तु पौष्करं पुष्करं च तत्र । पद्मपत्रं च काश्मीरं कुरभेदमिमं जगुः ॥ १७७ ॥ पौष्करं कटुकं तिक्तमुव कातकफज्वरान् । इंतिश्वासारुचिशोथानविशेषात्पार्श्वशूलनुत् ।
पुष्करमूल, पौष्कर, पुष्कर, पद्मपत्र तथा काश्मीर यह कुष्ठके भेद पोड़करमूल के नाम हैं, हिन्दी में इसे पोहकरमूल कहते हैं ।
पोहकरमूल- कटु, तिक्त तथा वात और कफके ज्वर, श्वास, अरुचि, शोथ और विशेषतः पार्श्वशूल इनको नष्ट करनेवाला है ॥ १७७ ॥ १७८ ॥ हेमाह्वा । पटुपर्णी हैमवती हेमक्षीरी हिमावती । माह्वा पीतदुग्धा च तन्मूलं चोकमुच्यते ॥ १७९ ॥H मावा रेचनी का भेदन्युत्क्लेशकारिणी । कृमिकंडूविषानाहकफपित्तास्रकुष्ठनुत् ॥ १८० ॥
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पटुपर्णी, हैमवती हेमक्षीरी, हिमावती, हेमावती, हेमाहा, पीतदुग्धा यह माह के संस्कृत नाम हैं । हिन्दी में इसे पीले दूधकी कटेरी तथा सत्या नाशी और अंग्रेजीमें Gambage Thistle कहते हैं । इसकी जड़को चोक कहते हैं ।
पीले दूध की कटेली-रेचन करनेवाली, तिक्त. मलको शिथिल करनेवाली, जीको मचलानेवाली तथा कृमि, खुजली, विष, आनाह, कफ, पित्त, रक्तविकार और कोंढ़को नष्ट करनेवाली है ॥ १७९ ॥ १८० ॥