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हरीतक्पादिनिघण्टुः भा. टी. । (३३)
कांपिल्लः । कांपिल्यः(छः)कर्कशश्वन्द्रोरक्तां गोरे चनोपि च ॥ १४८ कांपिल्यः कफपित्तास्रकृमिगुल्मोदरवणान् । हंति रेची कटूष्णश्च महानादविषाश्मनुत् ॥ १४९ ॥
कांपिल्य, कर्कश, चन्द्र, रक्तांग तथा रेचन यह कमीलेके नाम हैं। इसको हिन्दी में कमीला, फारसी में कन्विलाम और अंग्रेजी में Kamila Rodtlera कहते हैं। कमीला रेचन करनेवाला, कटु, गरम तथा कफ, पित्त, रक्तविकार, कृमि, गुल्म, उदररोग और व्रण इनको नष्ट करनेवाला तथा प्रमेह, आनाह, विष और पथरीको दूर करता है ।। १४८ ॥ १४९ ॥ आरग्वधः ।
आरग्वधो राजवृक्षः शंपाकश्चतुरंगुलः । आरेवतो व्याधिघाती कृतमालः सुवर्णकः ॥ १५० ॥ कर्णकारो दीर्घफलः स्वर्णगः स्वर्णभूषणः । आरग्वधो गुरुः स्वादुः शीतलः स्रंसनो मृदुः १५१ ज्वरहृद्रोगपित्तास्रवातोदावर्त्तशूलनुत् ।
तत्फलं स्रंसनं रुच्यं कोष्ठपित्तकफापहम् ॥ १५२॥ ज्वरे तु सततं पथ्यं कोष्ठशुद्धिकरं परम् ।
प्रावध, राजवृक्ष, शंषाक, चतुरंगुल, आरेवत, व्याधिघाती, कृतमाल, सुवर्णक, कर्णकार, दीर्घफल, स्वर्णग तथा स्वर्णभूषण यह अमलतासके नाम हैं | हिन्दी में यह अमलतास, फारसी में ख्यारे शम्बर पौर अंग्रेजी में Pudding Pipeltree इन नामोंसे पुकारा जाता है । अमलतास- भारी, मधुर, शीतल, स्रंसन ( दस्तोंके लगानेवाला ), कोमलतथा ज्वर, हृदयके रोग, रक्तविकार, वात, उदावर्त तथा शूलका नाश करता है । अमलतासकी फळी संसन करनेवाली, रुचिकारक तथा कोष्ट,
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