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हरीतक्पादिनिघण्टुः भा. टे!. |
पिप्पली रेचनी हंति श्वासकासोदरज्वरान् । कुष्ठप्रमेह गुल्मार्शः प्लीहशूलाममारुतान् ॥ ५५ ॥ आदी कफप्रदा त्रिग्धा शीतला मधुरा गुरुः । पित्तप्रशमनी सा तु शुष्का पित्तप्रकोपनी ॥ ५६ ॥ पिप्पली मधुसंयुक्ता मेदःकफ विनाशिनी । श्वासकासज्वरहरी वृष्या मेध्याग्निवर्द्धनी ॥ ५७ ॥ जीर्णज्वरेऽग्निमांद्ये च शस्यते गुडपिपली । कासाजीर्णारुचिश्वासहृत्पांडुकृमिरोगनुत् ॥ ५८ ॥ द्विगुणः पिप्पलीचूर्णागडोत्र भिषजां मतः ॥
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पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदेदी, चपला, कणा, उपकुल्या, ऊष्णा शौंडी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला यह पिप्पलीके नाम हैं। इसका हिन्दी में मद्य फारसीमें पिप्पलादशज ।
पिप्पली- दीपन करनेवाली, वीर्यवर्धक, पाकमें मधुर, आयुके बढाने - वाली, ऊष्ण नहीं, कटु, चिकनी, वात और कफको हरनेवाली, हल्की और रेचक है । पिप्पली - श्वास, खाँसी, उदर, ज्वर, कोट, प्रमेद, गुल्म, अर्श प्लीहा ( तिल्ली ), शूल तथा ग्रामको नष्ट करती है । पिप्पली यदि गाली दो तो कफको बढानेवाली, चिकनी, शीतल, मधुर, भारी और पित्तको शमन करनेवाली है, यदि सूखी हो तो पित्तको प्रकोप करती है। मधुके साथ खाई हुई पिप्पली मेद तथा कफको नष्ट करनेवाली, श्वास, काल और ज्वरको हरनेवाली, वीर्यवर्धक, बुद्धिवर्धक तथा अग्निको बढानेवाली है। जीर्ण ज्वर में और अग्निके मन्दहो जानेपर गुड़के साथ पिप्पली खाने योग्य है | गुड़के साथ पीपल खानेसे कास, अजीर्ण, अरुचि, श्वास तथा हृदय, पाण्डु और कृमि रोगोंको नष्ट करती है। श्रेष्ठ वैद्योंके मतमें पिप्पली चूर्णसे द्विगुण गुड़ डालना योग्य है ॥ ५३५८ ॥