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4 १२ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
आद्रकम् । आर्द्रकं शृंगवेरं स्यात्कटुभद्रं तथार्दिका । आर्द्रिका भेदनी मुर्वी तीक्ष्णोष्णा दीपनी मता ॥१९॥ कटुका मधुरा पाके रूमा वातकफापहा । ये गुणाः कथिताः अ॒व्यां तेऽपिसंत्याकेऽखिलाः५० भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणाकभक्षणम् ।
अग्निसंदीपनं रुच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनम् ॥११॥ आद्रक, शृंगवेर, कटुभद्र और आदिका यह अदरकके नाम हैं। इसे हिन्दीमें अदरक, फारसी में जिंजिबिलरतवा और अंग्रेजी में Emblic Myrobalan कहते हैं । आदिका भेदन करनेवाली, भारी, तीक्षण, ऊपण और दीपन करती है। आद्रिक पाक मधुर, रूखा और वात तथा कफको नष्ट करनेवाला है । जो गुण सोंठमें हैं वह सम्पूर्ण अदा कमें भी हैं। भोजनसे प्रथम लवण और आर्दक खाना सर्वदा हितकारी, अग्निको दीपन करनेवाला, रोचक और जीभ तथा कण्ठको शुद्ध करता
कुष्ठे पांड्वामये कृच्छ्रे रक्तपित्ते व्रणे ज्वरे । दाहे निदाघशरदोनॆव पूजितमाकम् ॥ ५२ ॥ कुष्ठ, पाण्डुरोग,कृच्छ, रक्तपिन, व्रया (घाव ), ज्वर, दाह इनमें तथा ग्रीष्म और शरद ऋतु में अदरकका सेवन नहीं करना चाहिये ।। ५२ ।।
पिप्पली। पिप्पली मागधी कृष्णा वैदेही चपला कमा। उपकुल्योपणाशौंडी कोला स्यात्तीक्ष्णतंडुला ॥५३॥ पिप्पली दीपनी वृष्या स्वादुपाकारसायनी । अनुष्णा कटुका स्निग्धा वातश्लेष्महरीलघुः॥ ५४॥