________________
१२
प्रथम वाचनीय विषय. अन्तरायकर्मकी उत्तर प्रकृतियां. १दानान्तराय, २ लाभान्तराय, ३ भोगान्तराय, ४ उपभो. गान्तराय और ५ वीर्यान्तराय ।
ये पूर्वोक्त कर्मोंकी मूल तथा उत्तर प्रकृतियां आत्माके साथ अनादिकालसे संबन्ध रखती हैं। जब आत्माका मोक्षगमन निकट होता है तब पूर्वोक्त आनेही कर्मों में से प्रथम मोहनीयकर्मकी उत्तर प्रकृतियोंको जीव क्रमसे नष्ट करता है ।
पूर्वोक्त आठों ही कर्मकी प्रकृतियों से जिस गुणस्थानमें जीव जितनी प्रकृतियोंको बाँधता है, जितनी वेदता है और जितनी सत्ता में रखता है, इस विषयका खुलासा संक्षेपसे आपको प्रतिगुणस्थान मिलता जायगा।