Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग जाता है। सुंसुमा के धड़ को देखते ही 5 पुत्रों सहित धन्य चिलात का पीछा छोड़ करूण रुदन करता है, निरन्तर भागमभाग से धन्य भूख-प्यास से व्याकुल पुनः राजगृह आना कठिन लगता है तब उन्होंने सुसमा की मृतदेह का भक्षण कर अपनी प्राणरक्षा की। सुंसुमा के शरीर का भक्षण करते समय केवल प्राणरक्षा ही उनका ध्येय था।
इसी प्रकार साधक को भी राग रहित होकर आहार करना चाहिए। आहार द्वारा शरीर रक्षा का लक्ष्य 'आत्मसाधना' ही है। ___मृतकन्या का मांस भक्षणकर जीवित रहने का उल्लेख बौद्धग्रंथों” में भी मिलता है। आपस्तम्बधर्मसूत्र' व बोधायनधर्मसूत्र'' में संन्यासियों के आहार संबंधी चर्चा इसी प्रकार मिलती है। नवदश अध्ययन : पुण्डरीक
प्रस्तुत अध्ययन का कथानक मानव जीवन में होने वाले उत्थान और पतन का तथा पतन और उत्थान का सजीव चित्रण उपस्थित करता है। महाविदेह क्षेत्र स्थित पुण्डरीकगिरि नगरी के तो राजपुरुष/राजा, जिसमें कण्डरीक का संयम त्याग, अपश्य आचरण, आर्तध्यान व असाध्यरोग के साथ सप्तम नरक पृथ्वी में गमन यानि उत्थान से पतन की कहानी है तो पुण्डरीक अचानक कण्डरीक को राज्य देकर संयम ग्रहण व उग्र साधना एवं प्रशस्त विचार, अनुत्तर सुखों की प्राप्ति पतन से उत्थान की कहानी, मानव को सत्यं शिवं सुन्दरं अथवा श्रेष्ठ आचार के श्रेष्ठ विचारों की ओर प्रेरित करने वाली है। सुख शांति मय जीवन का राज इसमें निहित है।
इस कथा के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि जो श्रमण चिरकाल पर्यन्त संयम पालन कर पथभ्रष्ट हो जाता है वह कण्डरीक की तरह सांसारिक दुःखों में भटकता रहता है और जो अंतिम क्षणों तक उच्च वैराग्य भावों से संयम का पालन करता है वह पुण्डरीक की भांति स्वल्पकाल में ही सिद्धि प्राप्त करता है।
__ भाई-भाई का अटूट प्रेम और भाई के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने जैसी उदात्त भावनाओं का निरूपण इस अध्ययन में किया गया है। द्वितीय श्रुतस्कंध
इस श्रुतस्कंध के 10 वर्ग और 206 अध्ययन हैं, जिनमें मानव, देव और व्यंतर आदि की सामान्य घटनाएँ निरूपित हैं।
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