Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
वाली हो, वह कला है। 2
चुरादिगणीय 'कल आस्वादने' धातु से 'कला' शब्द निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ है 'कलयति आस्वादयति इति कला' अर्थात् जो आस्वाद का विषय हो वह कला है, जिसमें आनन्द रस की उपलब्धि हो उसे कला कहते हैं ।
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भ्वादिगणीय ‘कडमदे' धातु (प्रसन्न करना, मदमस्त करना) से कला को संबंधित मानते हैं. अर्थात् जिससे प्रसन्नता की प्राप्ति हो, वह कला है ।" चुरादिगणीय धारणार्थक 'कल्' धातु से भी कला शब्द की निष्पत्ति हो सकती है, जिसका अर्थ है- सुख को धारण करे, मन या चित्त को धारण करे, वह कला है ।
कुछ विद्वान इसे 'कं' अर्थात् आनन्द को लाने वाला मानते हैं- 'कं आनन्दं लाति इति कला' ।
'कला' शब्द का अर्थ
भारतीय वाङ्मय में 'कला' शब्द का प्रयोग लगभग बीस अर्थों में हुआ है, जिसमें मुख्य हैं - 16वाँ भाग, छोटा भाग, चन्द्रमा का 16वां भाग, काल का एक प्रमाण विशेष, मूल- ब्याज, राशि के 30वें भाग का 60वाँ भाग, कौशल, चातुर्य, कपट, सुन्दर, कोमल, नौका, हुनर, विद्या, युक्ति, शिल्प, शोभा आदि ।' भारतीय परम्परा में 'कला' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम भरत नाट्यशास्त्र में उपलब्ध होता है । नाट्यशास्त्र में ऐसा कोई ज्ञान नहीं, कोई शिल्प नहीं, कोई विद्या नहीं कला नहीं हो।
'कला' का लोक प्रचलित अर्थ है- किसी भी कार्य को सर्वोत्तम ढंग से करने का तरीका ।
कला की परिभाषाएँ
● वृहदारण्यक
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'ब्रह्म - परमात्मा मूर्त और अमूर्त दोनों हैं, अमूर्त ब्रह्म के मूर्त रूप की अनुभूति-चेतना ही कला है। परमात्मा की मूर्तता - -व्यक्तता ही कला है। कला का र्का सौन्दर्य सृजन है, सौन्दर्य की विज्ञप्ति कला ही करती है, कला सौन्दर्य की
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