Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan

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Page 314
________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन करना। इन अतिचारों का परित्याग करके अशुभ संसार परिभ्रमण, जन्म-मरणादि स्वरूप दुःखमय संसार का चिन्तन करना चाहिए। समाधिमरण अनशन के प्रकार (i) भक्त प्रत्याख्यान जिस समाधिमरण में साधक स्वयं शरीर की सार-संभाल करता है और दूसरों की भी सेवा स्वीकार कर सकता है, वह भक्तप्रत्याख्यान कहलाता है। (ii) इंगित करण इसे स्वीकार करने वाला स्वयं तो शरीर की सेवा करता है किन्तु किसी अन्य की सहायता अंगीकार नहीं करता। भक्तप्रत्याख्यान की अपेक्षा इसमें अधिक साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है। (iii) पदोपगमन समाधिमरण ___ यह साधना की चरम सीमा की कसौटी है। इसमें शरीर की सार-संभाल न स्वयं के द्वारा की जाती है और न दूसरों के द्वारा कराई जाती है। इसे अंगीकार करने वाला साधक समस्त शारीरिक चेष्टाओं का परित्याग करके पादप-वृक्ष की कटी हुई शाखा के समान निश्चेष्ट, निश्चल, निस्पंद हो जाता है। अत्यन्त धैर्यशाली, सहनशील और साहसी साधक ही इस समाधिमरण को स्वीकार करते हैं। समाधिमरण साधनामय जीवन की चरम और परम परिणति है, साधना के भव्य प्रासाद पर स्वर्ण-कलश आरोपित करने के समान है। जीवन-पर्यन्त आन्तरिक शत्रुओं के साथ किए गए संग्राम में अंतिम रूप से विजय प्राप्त करने का महान् अभियान है। इस अभियान के समय वीर साधक मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है। मेघ अणगार तथा थावच्चापुत्र अणगार ने इसी प्रकार के समाधिमरण का वरण किया।282 अनुप्रेक्षा/भावना अनुप्रेक्षा का तात्पर्य है- बारम्बर चिन्तन करना। चिन्तन करने के लिए साधक के समक्ष ऐसे बारह विषय रखे गए हैं जिन पर उसे सदैव विचार करते रहना चाहिए।83 वैराग्य की स्थिरता के लिए इन पर चिन्तन करते रहना नितान्त 313

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