Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि तत्कालीन संस्कृति अपने शिखर पर थी। वह प्रत्येक प्राणी को जीवन के चरम लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए अभिप्रेरित करती थी ।
शिक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनैतिक व सामाजिक स्थिति आदि संस्कृति को प्रभावित करने वाले विभिन्न घटक भौगोलिक परिवेश से अप्रभावित नहीं रह सकते।
तत्कालीन भौगोलिक स्थिति से सम्बद्ध विभिन्न पहलुओं- द्वीप, नगर, पर्वत, नदियाँ, ग्राम, उद्यान, वन, वनस्पति आदि का उल्लेख 'ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण' नामक तृतीय अध्याय में किया गया है।
इस अध्याय में संसार, नरक, अधोलेक, देवलोक, जम्बूद्वीप, रत्नद्वीप, घातकीखण्ड, नन्दीश्वर द्वीप, कालिक द्वीप, महाविदेह व पूर्वविदेह आदि की भौगोलिक स्थिति को विभिन्न संदर्भों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
द्रोणमुख, पट्टन, पुटभेदन, कर्वट, खेट, मटम्ब, आकर, संवाह, आश्रम, निगम व सन्निवेश आदि विभिन्न प्रकार के स्थलों का संक्षिप्त विवेचन करते हुए राजगृह, चम्पा आदि महत्वपूर्ण नगरों की भौगोलिक स्थिति को इस अध्याय में प्रदर्शित किया गया है। नगरों का निर्माण वास्तुशास्त्र के आधार पर किया जाता था। नगर पूरी तरह योजनाबद्ध रूप से बनाए जाते थे। उस समय के भवनों आदि में विविध प्रकार के रत्न, मणियाँ, शंख, प्रवाल, मूंगा, मोती, स्वर्ण, रजत आदि का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता था । ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न राजमहलों का उल्लेख आया है, उन्हीं के संदर्भ में भवन निर्माण कला का वर्णन करते हुए भवन के विभिन्न प्रमुख अंगों- द्वार, स्तम्भ, गर्भगृह, अगासी, अट्टालिका, प्रमदवन, मण्डप, उपस्थानशाला, दीर्घिका, अंतःपुर, शयनागार, स्नानागार, भोजनशाला, प्रसूतिगृह, भाण्डागार, श्रीगृह व चारकशाला आदि की स्थिति व्यक्त की गई है।
तत्कालीन समय में प्रचलित वास्तुशास्त्र की वर्तमान में प्रासंगिकता व प्रचलन बढ़ता जा रहा है। प्रकृति के वैभव व रम्य स्थलों से प्रेरणा लेकर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है।
संस्कृति और समाज का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । संस्कृति के बिना समाज अंधा है और समाज के बिना संस्कृति पंगु है। संस्कृति को जानने के लिए
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