Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन नहीं सकता (केवल सिद्धावस्था के जीवों को छोड़कर)। प्रश्न उठता है कि क्या मृत्यु के बाद जीवन है और मृत्यु के पूर्व जीवन था? इसका समाधान ज्ञाताधर्मकथांग के विभिन्न प्रसंगों में मिलता है। ज्ञाताधर्मकथांग में कहा गया है कि कर्म से युक्त आत्मा संसार में भव-भ्रमण करती रहती है और कर्ममुक्त आत्मा सिद्धावस्था को प्राप्त हो जाती है, भव अटवी की परम्परा से मुक्त हो जाती है। ज्ञाताधर्मकथांग के कई उदाहरण पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की पुष्टि करने वाले हैंसुमेरप्रभ हाथी- मेरूप्रभ हाथी-राजकुमार मेघ-अनुत्तर विमान का देव-मनुष्य
जन्म-सिद्धावस्था।98 धन्यसार्थवाह- सौधर्म देवलोक में देव-मनुष्य भव-सिद्धावस्था। महाबल- मल्लीभगवती-सिद्धावस्था।300 नन्दमणिकार- दर्दुर-दर्दुरदेव।301 नागश्री- सुकुमालिका-द्रौपदी-द्रुपददेव-मनुष्य का जन्म।02 काली- कालीदेवी-महाविदेह में जन्म-सिद्धत्व की प्राप्ति ।303
यह सारा भवभ्रमण कर्म-बंध के कारण होता है, जब कर्म दलिकों का नाश होता है तो आत्मा हल्की होकर ऊर्ध्व स्थान अर्थात् मुक्तावस्था को प्राप्त हो जाती है और उसे पुनर्जन्म से सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है। ज्ञाताधर्मकथांग में इस बात को तुम्बे के उदाहरण से समझाया गया है। जीव रूपी तुम्बा 8 कर्म रूपी मिट्टी के आठ लेपों से भारी बन संसार रूपी जलाशय में डूबता है। कर्म लेप के दूर होने पर ऊर्ध्व गति में जाता है।
जैनेत्तर धर्म-दर्शन
ज्ञाताधर्मकथांग में जैनेत्तर धर्म-दर्शन के रूप में सांख्य मत के कतिपय सिद्धान्तों का निदर्शन शुक परिव्राजक तथा चोक्खा परिव्राजिका305 नामक चरित्रों के इर्द-गिर्द ही मिलता है।
शुक परिव्राजक ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्थवेद तथा षष्टितन्त्र (सांख्य शास्त्र) में निष्णात था। यह पांच यमों (अहिंसा आदि पांच महाव्रत) तथा पाँच नियमों (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर ध्यान) का पालन करता था।
सांख्य मतानुसार धर्म का मूल शौच है, जो दो प्रकार का होता है- द्रव्य शौच और भाव शौच। द्रव्य शौच जल और मिट्टी से होता है जबकि भाव शौच
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