Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन उपसंहार पाश्चात्य और पौर्वात्य अनुसंधानकर्ता भारतीय धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति का मूल वेदों में निहारते थे पर मोहनजोदड़ो-हड़प्पा के ध्वंसावशेषों में प्राप्त सामग्री के पश्चात् चिन्तकों की चिन्तन-दिशा ही बदल गई और अब यह प्रमाणित हो चुका है कि श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृति से पृथक् है। वैदिक संस्कृति में ईश्वर को सृष्टि का निर्माता माना है, जबकि श्रमण परम्परा ने विश्व की संरचना में जड़ और चेतन इन दोनों को प्रधानता दी है। जड़ और चेतन ये दोनों तत्त्व ही सृष्टि के मूल कारण हैं। सृष्टि की कोई आदि नहीं है, वह तो अनादि है। चक्र की तरह वह सदा चलायमान रहती है। विश्व के प्रत्येक धर्म और परम्परा में सृष्टिचक्र के विभिन्न पहलुओं का निरूपण पृथक्-पृथक् ग्रन्थों में प्रतिपादित किया गया है। वैदिक-परम्परा में 'वेद', बौद्धों में 'त्रिपिटिक', ईसाइयों में 'बाइबिल', पारिसियों में अवेस्ता' और मुस्लिमों में कुरान' ऐसे ही पवित्र धर्म-ग्रन्थ हैं। इसी क्रम में जैन धर्मग्रंथों को 'आगम' कहा जाता है। किसी भी रचना की शाश्वत प्रासंगिकता का निर्धारण उसमें सत्यांश के आधार पर ही किया जा सकता है। जो रचना सनातन सत्य के जितनी ज्यादा समीप होगी, उसकी प्रासंगिकता उतनी ही ज्यादा दीर्घजीवी होगी। सनातन सत्य से अनुप्राणित आगम 'ज्ञाताधर्मकथांग' इसी कारण आज भी जीवन की विविध सच्चाईयों को प्रकाशित कर रहा है। कथा प्रधान आगम होते हुए भी इसमें दर्शन, अर्थ, राजनीति, समाज, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों को अनावृत किया गया है। कथाओं के माध्यम से यह आगम पाठक के हृदय को छूने में समर्थ है। इस दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथांग में प्रयुक्त दृष्टान्त साध्य की सिद्धि के साधन बनकर सामने आते हैं। अंगागमों में ज्ञाताधर्मकथांग का छठा स्थान है। इसमें उदाहरण प्रधान धर्मकथाएँ हैं। इन कथाओं में उन धीर-वीर साधकों का वर्णन है जो भयंकर उपसर्ग आने पर भी मेरु की भांति अडिग रहे। इसमें परिमित वाचनाएँ, अनुयोगद्धार, वेढ, छन्द, श्लोक, नियुक्तियाँ, संग्रहणियाँ व प्रतिपत्तियाँ संख्यात-संख्यात हैं। इसके दो श्रुतसकंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में उन्नीस अध्ययन हैं और द्वितीय श्रुतस्कंध में दस वर्ग हैं। 326

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354