Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 328
________________ उपसंहार इस आगम में आत्म उन्नति का मार्ग, इस मार्ग के अवरोध और इन अवरोधों को दूर करने के उपायों की सांगोपांग चर्चा की गई है। महिला वर्ग द्वारा उत्कृष्ट आध्यात्मिक उत्कर्ष, आहार का उद्देश्य, संयमी जीवन, शुभ परिणाम, अनासक्ति व श्रद्धा का महत्व आदि विषयों पर कथाओं के माध्यम से प्रकाश डाला गया है। इस आगम की भाषा क्लिष्ट, साहित्यिक व समास प्रधान है लेकिन विषय-वस्तु की सरल प्रस्तुति के कारण इस पर व्याख्याएँ बहुत कम लिखी गई हैं। अभयदेवसूरि ने इस ग्रंथ पर शब्दार्थ प्रधान वृत्ति संस्कृत भाषा में लिखी हैं। 3804 श्लोक प्रमाण वाली इस वृत्ति की प्रशस्ति से पता चलता है कि इसकी अनेक वाचनाएँ वृत्तिकार के समय प्रचलित थी। लक्ष्मी कल्लोल गणि ने वि.सं. 1596 में ज्ञाताधर्मकथांग वृत्ति का निर्माण किया था। आधुनिक युग में श्री घासीलाल जी महाराज ने संस्कृत में सविस्तार टीका लिखी है। धर्मसिंह मुनि के लिखे टिब्बे भी मिलते हैं। आचार्य श्री अमोलक ऋषि व पं. शोभाचन्द्र भारिल्ल के हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित हैं। पं. बेचरदास दोशी का गुजराती छायानुवाद भी प्रकाशित हुआ है (ज्ञाताधर्मकथांग, मधुकरमुनि, भूमिका, पृ. 59)। इस ग्रंथ का राजस्थानी भाषा में अनुवाद 'ज्ञाता की जोड़' (आचार्य भिक्षु व जयाचार्य) नाम से किया गया है। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा विरचित इसका सटिप्पण अनुवाद उपर्युक्त व्याख्या साहित्य से अनेक दृष्टियों से विशिष्ट है। इसमें ऐतिहासिक व पारम्परिक तथ्यों का वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। युवाचार्य मधुकर मुनि द्वारा सम्पादित 'ज्ञाताधर्मकथांग' की प्रस्तावना में वेद और आगम, ज्ञातासूत्र, परिचय, मेघकुमार व सौंदरनन्द की तुलना, राजगृह, स्वप्न, दोहद, कला-एक विश्लेषण, सिद्धि और भाषा, कथा परिचय, शकुन, व्याख्या साहित्य आदि के संदर्भ में विस्तार से विचार किया है। ज्ञाताधर्मकथांग का हिन्दी अनुवाद करते समय इस ग्रंथ में विशेष टिप्पणियाँ भी की गई हैं, जो पाठक को विषयवस्तु का तलस्पर्शी ज्ञान कराने में सहायक हैं। कृतकार्यों के सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि ज्ञाताधर्मकथांग को आधार बनाकर, विशेष रूप से इस संदर्भ में कोई शोध कार्य नहीं हुआ है, अत: ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन वांछनीय है। आज हमारा चिन्तन व कर्म पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगता जा रहा है, 327

Loading...

Page Navigation
1 ... 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354