Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन आवश्यक है।
बहिर्भाव से अन्तर्भाव में रमण करना ही अनुप्रेक्षा है। अनुप्रेक्षा में मानव जीव और जगत् के सम्बन्ध में गहराई से चिन्तन-मनन करता है। अनुप्रेक्षा के अर्थ में ही जैन आगम साहित्य में भावना शब्द व्यवहत हुआ है।
वैराग्य को उद्बुद्ध करने वाली जितनी भावनाएँ हैं, उन सभी का समावेश वैराग्य भावना में होता है। वैरागय का वर्णन आगम साहित्य में सर्वत्र मुखरित हुआ है। इन भावनाओं के चिन्तन से वैराग्य भावना परिपुष्ट होती है और उसकी प्रेरणा प्राप्त होती है। आचार्यों ने वैराग्य भावना के बारह प्रकार बताए हैं, वे इस प्रकार हैं1. अनित्य भावना
संसार के पदार्थ अनित्य और क्षणभंगुर हैं, अत: उनके वियोग में दुःखी होना व्यर्थ है- ऐसा चिन्तन करना, अनित्य भावना है। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार जब अपने माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगते हैं और माता-पिता उन्हें संसार के सुखों को भोगने के लिए प्रेरित करते हैं तब मेघकुमार यही कहते हैं कि संसार के पदार्थ अनित्य हैं, अशाश्वत हैं, क्षणभंगुर हैं, अध्रुव हैं, पानी के बुलबुले के समान हैं, अतः आगे का पीछे अवश्य ही त्याग करने योग्य है। मेघकुमार ऐसा बार-बार अनुचिन्तन करता हुआ उन्हें समझाने का प्रयास करता है ।284 2. अशरण भावना ___संसार के दुःखों से बचाने वाला कोई नहीं। मात्र वीतरागी द्वारा प्ररूपित धर्म ही शरण है- इस प्रकार का विचार करना, अशरण भावना है। इससे सांसारिक भावों से ममत्व हट जाता है।
ज्ञातार्धकथांग में धर्मघोष स्थविर अपने प्रवचन में इसी भावना, 'जिनशासन के सिवाय अन्यत्र कोई संसार सागर से पार लगाने वाला नहीं है', का उपदेश देते हैं 285 कृष्णवासुदेव के यह कहने पर कि तुम दीक्षा न लेकर मेरी भुजाओं की छाया के नीचे रहकर मनुष्य सम्बन्धी कामभागों को भोगों तब थावच्चापुत्र कहते हैं कि यदि आप मेरे जीवन का अंत करने वाले मरण को रोक दें और शरीर के रूप-सौन्दर्य का विनाश करने वाली जरा को रोक सकें, तो मैं आपकी भुजाओं के नीचे रहकर मनुष्य सम्बन्धी विपुल काम-भोग भोगता हुआ विचरूँ- इस प्रकार कहने पर कृष्ण वासुदेव ने थावच्चापुत्र से कहा- हे देवानुप्रिय! मरण और
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