Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan

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Page 313
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन संलेखना/समाधिमरण यह एक विशिष्ट तप है, जिसमें शरीर, कषाय व आहार को उत्तरोत्तर कृश किया जाता है। शरीर, कषाय आदि के यथाविधि कृशीकरण का नाम ही संलेखना है। जब उपसर्ग, रोग और दुर्बलता के कारण शरीर धार्मिक क्रियाएँ करने में असमर्थ हो जाता है तो साधक शान्ति एवं दृढ़तापूर्वक शरीर के संरक्षण का भाव छोड़ देता है। आहार के साथ लौकिक और पारलौकिक कामनाओं को छोड़कर आत्मसाक्षात्कार की ओर गतिमान होता है। ज्ञाताधर्मकथांग में आए लगभग सभी साधकों ने मृत्यु समीप जानकर अनशन स्वीकार कर लिया। मेघमुनि73, धन्यसार्थवाह274, थावच्चापुत्र अनगार75, शुक अनगार76, महाबल आदि सातों अनगारा, पोट्टिला278 व धर्मरूचि अनगार279 आदि ने शुद्ध भावना और उत्साह के साथ संलेखना-संथारापूर्वक मृत्यु का वरण कर लिया। इसी प्रकार उपसर्ग को निकट जानकर अर्हन्नक श्रावक ने सागारी संथारा स्वीकार किया।280 मेढक (नन्दमणियार का जीव) ने अपना अंतिम समय समीप जानकर समाधिमरण का वरण किया।281 संलेखना के अतिचार - संलेखना व्रत के पाँच अतिचार कहे हैं1. इहलोकाशंसा प्रयोग ___ इस लोक में कुछ पद आदि पाने की अभिलाषा से संलेखना करना। 2. परलोकाशंसा प्रयोग परलोक में कुछ पद आदि पाने की अभिलाषा से संलेखना करना। 3. जीविताशंसा प्रयोग संलेखना में प्रवृत्त होने पर लोगों के द्वारा पूजा, सत्कार से आकृष्ट होकर जीने की अभिलाषा करना। 4. मरणाशंसा प्रयोग दुःखी होने पर जल्दी मरने की कामना करना। 5. कामभोगशंसा प्रयोग भावी जीवन में किन्हीं भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करने का निश्चय 312

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