Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में कला गयलक्खणं
___ गयलक्खणं अर्थात् हाथी के लक्षण जानना । ज्ञाताधर्मकथांग में चतुरंगिणी सेना में हाथी को भी शामिल किया गया है, इससे स्पष्ट है कि लोग हाथी के लक्षणों से परिचित थे। श्रेणिक राजा का सेचनक नामक गंधहस्ती और कृष्ण विजयनामक गंधहस्ती पर आरूढ़ होने का स्थान-स्थान पर वर्णन मिलता है। ये गंधहस्ती उत्तम गजलक्षणों के समान थे। गोणलक्खणं
इसका अर्थ है गाय-बैल के लक्षण जानना । ज्ञाताधर्मकथांग में गाय-बैल आदि का नामोल्लेख मिलता है। धन्य नामक सार्थवाह व थावच्चागाथा पत्नी के पास गाय, भैंस व बकरियां थी।” सार्थवाह के पुत्रों के पास हष्ट-पुष्ट बैल थे। कुक्कुडलक्खणं
इसका अर्थ है कि मुर्गों के लक्षण जानना। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि सार्थवाह पुत्रों ने मयूरी के अंडों को मुर्गी के अंडों के साथ मिला दिया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन समय में लोग मुर्गी आदि पालते थे और उन्हें प्रशिक्षित कर अपनी आजीविका चलाते थे। छत्तलक्खणं
इसका अर्थ है छत्र के लक्षण जानना। ज्ञाताधर्मकथांग में छत्र का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर मिलता है। श्रेणिक राजा को कोरंट वृक्ष के पुष्पों की माला वाला छत्र धारण कराया गया। राजा ने देवदत्ता गणिका को छत्र, चामर और बाल व्यंजन प्रदान किए। अर्हत् अरिष्टनेमि के अतिशय में छत्रातिछत्र का उल्लेख आया।02 प्रतिबुद्धिराजा के मस्तक पर छत्र धारण किया गया।03 युद्ध क्षेत्र के वर्णन में सब वीरों के सिर पर सफेद रंग का छत्र पाया जाता है। हाथी एवं रथ के ऊपर श्वेत छत्र सुशोभित होता था।04 . डंडलक्खणं
इसका अर्थ है - दंड के लक्षण जानना। मेघकुमार के समीप दो तरुणियां विचित्र दंडी वाले चामर धारण करके खड़ी हुई 1105 असिलक्खणं
असिलक्खणं का अर्थ है- खड्ग के लक्षण जानना। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि धन्यसार्थवाह के घर को लूटने जाते समय चिलात चोर
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