Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन पुण्य। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि जब भी श्रमण पधारते थे तो प्रजा व राजा उनको वंदन-नमस्कार करने जाते थे, जो पुण्य का हेतु है। इसी प्रकार श्रमणों को गोचरी देने का उल्लेख भी मिलता है। 4. पाप
जिस अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा अशुभ कर्म का बंधन होता है, उपचार से उस अशुभ प्रवृत्ति को पाप कहा जाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में जीव के नरक गति में जाने का कारण अठारह प्रकार के पाप बताए गए हैं। ये इस प्रकार हैंप्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवार, रति-अरति, माया-मृषा और मिथ्यादर्शनशल्य। 5. आश्रव
जिस परिणाम से आत्मा में कर्मों का प्रवेश होता है, उसे आश्रव कहा जाता है। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग- ये आश्रव के पाँच भेद हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में थावच्चापुत्र कृष्णवासुदेव से कहता है- 'अज्ञान, मिथ्यात्व, अविरति और कषाय द्वारा संचित कर्मों का क्षय करने के लिए मैं संयम लेना चाहता हूँ। 6. संवर ____ आत्मा से संबद्ध होने के लिए आश्रव-द्वारों से कर्म समूह आते हैं, उन्हें जिन वृत्तियों के माध्यम से रोक दिया जाता है, वह संवर तत्त्व है। संवर के पाँच भेद हैं- सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद, अकषाय तथा अयोग। यद्यपि ज्ञाताधर्मकथांग में इनका स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन विभिन्न पात्रों की गतिविधियों के माध्यम से उनकी संवर वृत्ति का अनुमान लगाया जा सकता है। सुधर्मास्वामी सम्यक्त्व संवर की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं- "नन्नत्व णाणदंसण-चरित्ताणं वहणयाए....... ।।" थावच्चापुत्र", महाबल तथा पोट्टिला" आदि के द्वारा प्रव्रज्या अंगीकार करना सर्व व्रत संवर का उदाहरण है। इसी प्रकार दर्दुर भी जीवनपर्यन्त के लिए समस्त प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता है। ज्ञातव्य है कि तिर्यंच गति में अधिक से अधिक पाँच गुणस्थान हो सकते हैं, अतः देशविरति तो संभव है, किन्तु सर्वविरति-संयम की संभावना नहीं है, तो फिर नंद के जीव दर्दुर ने सर्वविरति रूप प्रत्याख्यान कैसे कर लिया? यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथ में
266