Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
कर सकता है।
ज्ञाताधर्मकथांग में आचार
आचरण की अपेक्षा से धर्म के दो भेद हैं (अ) गृहस्थ धर्म (अगार धर्म), (ब) श्रमणधर्म (अनगार धर्म) । इन्हें दो आश्रम के रूप में स्वीकार किया जाता है। व्रतपालन के दृष्टिकोण से धर्म दो प्रकार का होता है- (अ) महाव्रतगृहत्यागी मुनियों के लिए और (ब) अणुव्रत - संसारवर्ती गृहस्थों के लिए ।
ज्ञाताधर्मकथांग में अगार और अनगार दोनों धर्मों का उल्लेख मिलता है। सागार अवस्था में श्रमणोपासक बनकर अगार धर्म का पालन और अनगार अवस्था में मुनिचर्या का पालनकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए क्रमशः विभिन्न श्रावकों व मुनियों को देखा जा सकता है ।
दोनों धर्मों का आचरण-मीमांसा के परिप्रेक्ष्य में विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है
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गृहस्थधर्म या श्रावकाचार
अगर धर्म की आराधना का आधार सम्यक्त्व सहित बारह व्रत हैं । अगार धर्म को देशविरति भी कहा गया है। 133 पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षा व्रत- इन बारह व्रतों को धारण कर श्रमणोपासक बनने के विभिन्न उदाहरण ज्ञाताधर्मकथांग में मिलते हैं । 134
पाँच अणुव्रत
अणुव्रत का अर्थ है - छोटे-छोटे व्रत या नियम । श्रावक के व्रतों में मुनि की तरह पूर्ण त्याग की अपेक्षा अंश (देश) त्याग को महत्व दिया गया है। इसे एक देश संयम भी कहा जाता है।
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह- ये पाँच अणुव्रत हैं, जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
(1) अहिंसाणुव्रत
अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए रागद्वेषपूर्वक किसी निरपराध जीव को मन-वचन-कर्म से पीड़ा पहुँचाना हिंसा है। इस प्रकार की हिंसा के स्थूल-त्याग को अहिंसाणुव्रत कहते हैं ।
(2) सत्याणुव्रत
गृहस्थ के लिए झूठ का सर्वथा त्याग संभव नहीं है, अतः उसके लिए
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