Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन क्रोध, 7. मान, 8. माया, 9. लोभ, 10. राग, 11. द्वेष, 12. कलह, 13. अभ्याख्यान, 14. पैशुन्य, 15. परपरिवाद, 16. रति-अरति, 17. मायामृषा, 18. मिथ्यादर्शनशल्य।
साधु को इन अट्ठारह पापस्थानों का सेवन नहीं करना चाहिए, इनसे बचकर रहना चाहिए। बारह भिक्षु प्रतिमाओं (विशिष्ट प्रतिज्ञाएँ) की साधना ___बारह भिक्षु प्रतिमाएँ साधु-जीवन में निराहार, अल्पाहार, स्वावलंबन और स्वाश्रयत्व सिद्ध करने तथा आत्मशक्ति बढ़ाकर कर्मक्षय हेतु पुरुषार्थ करने की प्रतिज्ञाएँ हैं।
ज्ञाताधर्मकथांग में मुनि मेघकुमार242 और महाबल आदि सातों मुनियों243 ने भिक्षु प्रतिमाओं को न केवल धारण किया अपितु निर्विघ्न रूप से उनका पालन भी किया। थावच्चामुनि भी सुदर्शन को अणगार का स्वरूप बतलाते हुए भिक्षु प्रतिमाओं का उल्लेख करते हैं।244
ये बारह भिक्षु प्रतिमाएँ इस प्रकार हैंप्रथम प्रतिमा
एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की लेना। इसकी अवधि एक माह की होती है। द्वितीय प्रतिमा से सप्तम प्रतिमा तक
द्वितीय प्रतिमा में दो दत्ति आहार की और दो दत्ति पानी की, इसी प्रकार तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं प्रतिमा में क्रमशः तीन, चार, पाँच, छ: और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही पानी की ग्रहण करना।
इनमें से प्रत्येक प्रतिमा का समय एक मास का है। आठवीं प्रतिमा
यह सात अहोरात्रि की होती है। इनमें एकान्तर चौविहार उपवास करना तथा गाँव के बाहर उत्तानासन (आकाश की ओर मुँह करके लेटना), पाश्र्वासन (एक करवट से लेटना) या निषधासन (पैरों को बराबर करके बैठना) से ध्यान लगाना एवं उपसर्ग आए तो शान्तचित्त से सहना आदि प्रक्रियाएँ हैं। नौवीं प्रतिमा
यह प्रतिमा भी सात अहोरात्रि की होती है। इसमें चौविहार बेले-बेले पारणा करना, ग्राम से बाहर एकान्त स्थान में दण्डासन, लगुडासन अथवा
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