Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन लिए कहते हैं।217 (4) आदान निक्षेपण समिति
__ शास्त्र, पात्र, वस्त्र आदि उपकरणों को सावधानीपूर्वक परिर्माजन कर उठाना-रखना आदान-निक्षेपण समिति है। (5) परिष्ठापना समिति
भली-भांति देखकर शुद्ध और निर्जन्तुक स्थान पर अपने मल-मूत्र तथा अन्य त्याज्य वस्तुओं एवं स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना-प्रमार्जना करना परिष्ठापन समिति है। धर्मघोष स्थविर ने धर्मरूचि अनगार को कहा कि वह नागश्री द्वारा बहराए गए तिक्त तुम्बे के शाक को एकान्त, आवागमन रहित, अचित्त भूमि में परठ दे।12 धर्मरूचि अनगार ने स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना की।13।
इन पाँचों समितियों का पालन करने से मुनि षट्कायिक जीवों की हिंसा से बच जाता है तथा संसार में रहता हुआ पापों से लिप्त नहीं हो पाता।214 तीन गुप्तियाँ
पाप क्रियाओं से आत्मा को बचाना गुप्ति है। मन को राग-द्वेष से अप्रभावित रखना मनोगुप्ति है। असत्य वाणी का निरोध करना अथवा मौन रहना वचन गुप्ति है। शरीर को वश में रखकर हिंसादि क्रियाओं से दूर रहना काय गुप्ति है। भगवान महावीर मेघकुमार को पुनः प्रव्रजित करने के पश्चात् उसे तीन गुप्तियों के पालन का उपदेश देते हैं।15 सुव्रता नामक आर्या तीन गुप्तियों का पालन करती थी।16 पंचेन्द्रिय विजेता
ज्ञाताधर्मकथांग में भगवान महावीर मुनि मेघ को संयम में स्थिर करने के लिए कहते हैं कि हे मेघ! तुम इन्द्रियों का गोपन करना।17 आलोच्य ग्रंथ में इन्द्रिय संयम को कर्म के शरीर के गोपन के समान बताया है जो जीव अपनी इन्द्रियों को जीत लेता है, वह इस संसार-सागर को पार कर जाता है और यदि इस संसार-सागर में रहता है तो वह वंदनीय, पूजनीय.... देवस्वरूप एवं चैत्यस्वरूप तथा उपासनीय बनता है।218 जो इन्द्रियों के विषयों-कामभोगों में लिप्त होता है उसका यह भव और परभव दोनों बिगड़ जाते हैं जैसे जिनरक्षित ने अपनी इन्द्रियों में आसक्त होकर दुर्लभ मानव जीवन को बर्बाद कर दिया। लेकिन जिनपलिक ने इन्द्रिय संयम का परिचय देते हुए अपना जन्म-मरण सुधार लिया।20 ज्ञाताधर्मकथांग में आकीर्ण घोड़ों के समान इन्द्रियों में आसक्त, गृद्ध,
297