Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग में कला धारिणी देवी के शयन कक्ष का वर्णन करते हुए कहा गया है कि उसमें कसीदा काढ़े हुए क्षौमदुकूल का चद्दर बिछा हुआ था। वह आस्तरक, मलक, नवत, कुशक्त, लिम्ब और सिंहकेसर नामक आस्तरणों से आच्छादित था। श्रेणिक राजा ने पक्षी के पंख के समान अत्यन्त कोमल, सुगंधित और कषाय रंग से रंगे हुए वस्त्र से शरीर को पोंछा। धारिणी देवी ने दोहद उत्पन्न होने पर विचार किया कि वे माताएँ धन्य हैं जो नासिका के निश्वास की वायु से उड़ने वाले अर्थात् अत्यन्त बारीक वस्त्र धारण करती है।' रक्षिका को दूष्य-रेशमी आदि मूल्यवान वस्त्रों की भाण्डागारिणी नियुक्त किया। नागश्री ने टुकड़े-टुकड़े सांधे हुए वस्त्र पहन रखे थे। कछुल्ल नारद ने काला मृगचर्म उत्तरासंग के रूप में वक्षस्थल पर धारण कर रखा था। कनककेतु राजा के कौटुम्बिक पुरुष आकीर्ण नामक विशेष अश्वों को लाने के लिए अपने साथ कोयतक, कंबल, प्रावरण, नवत, मलय, मसग, शिलापट्टक (श्वेत वस्त्र) लेकर गए। __युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में कम्बोज के राजा ने जो वस्त्र उपहार में दिए थे, वे सर्वोत्कृष्ट माने गए थे। भैंस के रोओं से बना बना और्ण' चूहों आदि के रोओं से बना 'वैल' एवं बिडाल के रोओं से बना 'वार्षदंश' आदि बहुमूल्य वस्त्र वे उपहार में लाए थे।
___ उत्तरकुरु जीतने पर अर्जुन आदि को भी काफी चीजें मिली थी। उनमें भी बहुमूल्य वस्त्र, आभरण, क्षौम, चर्म आदि थे।" विलेवणविहिं
इसका अर्थ है विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना व लेप करना। ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न स्थानों पर विलेपन का प्रयोग मिलता है। श्रेणिक राजा ने शतपात तथा सहस्रपाक आदि श्रेष्ठ सुगंधित तेल और गोशीर्ष चंदन का विलेपन और केशर का लेपन किया। सयणविहिं
__ इसका अर्थ है शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना।” इस कला का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न रूपों में मिलता है। धारिणीदेवी अपने उत्तम भवन में सुगंधित, कोमल, रोएंदार शय्या पर सो रही थी। सागरपुत्र सुकुमालिका के साथ शयनागार में आया। शयनागार का उल्लेख शयन करने की कला का परिचायक है। द्रौपदी के स्वयंवर में समागत विभिन्न राजाओं के शयन के लिए शय्याओं की व्यवस्था की गई थी। 2
249