Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में कला समर्थन उत्तरकांड से होता है, जहाँ रावण को नृत्य और गान के साथ भगवान शंकर की आराधना करते हुए चित्रित किया गया है। वाइयं
ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न वाद्ययंत्रों का उल्लेख मिलता है, जिनमें प्रमुख है- शंख, पणव, पटह", भेरी, झालर", खरमुखी', हुडुक्क, मृदंग", दुंदुभि , तंत्री, तल, ताल, घन, त्रुटिक", विविध प्रकार की वीणाएँ, बांसुरी। अर्हत् अरिष्टनेमि के आगमन पर द्वारका नगरी के कौटुम्बिक पुरुषों ने कौमुदी भेरी बजाकर लोगों का आह्वान किया। पद्मनाभराजा से युद्ध के समय वासुदेव कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख बजाकर उसकी एक तिहाई सेना को हत कर दिया। धारिणी देवी को विभिन्न वाद्यों की ध्वनि सुनते हुए वनभ्रमण का दोहद उत्पन्न हुआ। कनककेतु के कौटुम्बिकों ने घोड़ों को प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार की वीणाएँ बजायी। सरगयं
ज्ञाताधर्मकथांग के उपर्युक्त संदर्भो में वर्णित वाद्ययंत्रों से स्पष्ट है कि उस समय स्वर जानने की कला (सरगयं) भी विकसित अवस्था में थी। देवदत्ता गणिका विभिन्न प्रकार के नृत्य, गीत और वाद्यों में मस्त रहती थी। पोक्खरगयं
उपर्युक्त संदर्भो में वर्णित विभिन्न वाद्ययंत्र बजाने की कला से स्पष्ट है कि उस समय वाद्ययंत्र सुधारने की कला भी रही होगी।
जूयं
. ज्ञाताधर्मकथांग में जुए से संबंधित विभिन्न तथ्य मिलते हैं। विजयचोर द्यूत में आसक्त था। वह जुए के अखाड़ों को देखता फिरता था। धन्यसार्थवाह का दास चेटक भी जुए में आसक्त था और वह जुआघरों में मजे से भटकता था। विजयचोर जुआरियों का आश्रयदाता था। जणवायं
ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न स्थानों पर वाद-विवाद का उल्लेख मिलता है। शुक परिव्राजक और थावच्चापुत्र अणगार के मध्य नीलाशोक उद्यान में धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद हुआ। विदेहराजवर कन्या मल्ली और चोक्खा परिवाजिका के बीच भी विभिन्न धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद हुआ।
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