Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में कला अपनी सेना का पड़ाव डालकर पौषधशाला में प्रवेश किया और कृष्णवासुदेव सुस्थितदेव का मन में अनुचिन्तन करने लगे । 118
नगरमाणं
नगरमाणं से तात्पर्य नया नगर बसाने से है । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि पाण्डवों द्वारा दक्षिणी वेलातट पर पाण्डुमथुरा नगरी का निर्माण किया गया । 119
वूहं
वूहं का अर्थ है - व्यूह रचना । ज्ञाताधर्मकथांग में व्यूह रचना का उल्लेख तो नहीं मिलता है लेकिन चतुरंगिणी सेना के प्रसंगों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि तत्कालीन समय में व्यूह रचना की कला विद्यमान थी । 120
पडिवूहं
इसका अर्थ है विरोधी सेना के व्यूह के सामने अपनी सेना का मोर्चा बनाना। ज्ञाताधर्मकथांग में इसका भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता लेकिन सैन्य पड़ाव 121 के संदर्भ में इस कला को भी स्वीकारा जा सकता है ।
चारं
चारं का तात्पर्य सैन्य संचालन से है। सैन्य संचालन में सेनापति का विशिष्ट महत्व है । ज्ञाताधर्मकथांग में सैन्य संचालन का तो स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता लेकिन सेनापति का उल्लेख मिलता है जो इस कला की विद्यमानता का परिचायक है। 122 कुम्भराजा और पद्मनाभ राजा ने अपने-अपने सेनापति को बुलाकर सेना को सुसज्जित करने को कहा | 123
पडिचारं
प्रतिचार का अर्थ है - शत्रुसेना के समक्ष अपनी सेना का संचालन करना । इसका विवेचन भी उपर्युक्तानुसार समझा जा सकता है। चक्कवूहं
चक्कवूहं का अर्थ चक्रव्यूह बनाने से है। गुरुवर द्रोणाचार्य ने इस व्यूह की रचना की थी । 124 दैत्यगुरु शुक्राचार्य महाभारतकार के ही चक्रव्यूह के लक्षण की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि जो चक्राकार गोल हो, मध्य में आठ भागों में विभक्त कुण्डली - आकार के बने हो, उसके अन्दर घुसने के लिए एक ही मार्ग हो तो ऐसी सेना पंक्ति को चक्रव्यूह कहते हैं। 125
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