Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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अष्ठम परिवर्त ज्ञाताधर्मकथांग में कला कला मानव संस्कृति की उपज है। प्रकृति में विचरण करते हुए मानव ने श्रेष्ठ संस्कार के रूप में जो कुछ सौन्दर्यबोध प्राप्त किया है, 'कला' उसी की प्रतिध्वनि है। परिस्थितियों को इच्छित आकार देकर ही मनुष्य ने मानव-संस्कृति को जन्म दिया और उसे विकास के शिखर की ओर अग्रसर किया। पशु और मनुष्य में मुख्य अन्तर ऊोमुखी चेतना का है, जो उसे प्रकृति पर विजय प्राप्त करने और परिस्थिति को इच्छित स्वरूप देने में समर्थ बनाती है। आहार-भयमैथुनादि सामान्य पशु-क्रियाओं से ऊपर उठकर मनुष्य ने जब आत्मचैतन्य प्राप्त किया, तब उसमें एक नई दीप्ति की प्रस्फुरणा हुई। जीवन-संघर्ष से थोड़ा अवकाश मिलते ही मानव अपने अनुभवों से लाभ प्राप्त करता हुआ सुविधावाद की ओर मुखातिब होता है। पर्णकुटी से प्रासाद तक बढ़ते हुए मनुष्य ने अपनी अनवरत वृद्धिमान आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं की, बल्कि अपने अन्तस् में उत्कृष्ट सौन्दर्य-चेतना का विकास किया और शारीरिक आवश्यकताओं से ऊपर उठकर मानसिक संतृप्ति को अपना ध्येय बनाया। पकवान और सुगंधित द्रव्यों का आविष्कार, रंगोली की कला, सोने-चांदी के आभूषणों का वैचित्र्य, चित्र और मूर्ति का निर्माण, इष्ट-मित्रों के हास-विनोद, कथा और काव्य, नृत्य और संगीत, ये सब मानव की सतत विकासोन्मुख कला-चेतना के ही विभिन्न आयाम हैं। मानसिक जगत् की ये आह्लादकारी चेष्टाएँ मनुष्य के भाव-जगत को सुन्दरता और स्निग्धता सम्प्रेषित करती रही है।
___ 'कला' शब्द बहुचर्चित-बहुप्रचलित और अति प्राचीन शब्द रहा है। कला की नानाविध परिभाषाएँ एवं व्याख्याएँ की गई हैं।
कला शब्द की व्युत्पत्ति
'कला' शब्द की अनेक व्युत्पत्तियाँ उपलब्ध हैं1. 'कल्' धातु से व्युत्पन्न होने के कारण 'कला' शब्द का अर्थ होता है
करना, सृजन, रचना, निर्माण या निष्पन्न करना।' 2. 'कं सुखम् लातीति कला' अर्थात् जो सुख को लाने वाली, प्रदान करने
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