Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में कला मापिका है।'' ) ध्वन्यालोक लोचना कौमुदी
"कला प्रस्तुत यथार्थ की यथावत् नकल नहीं उतारती बल्कि वह उसे आदर्शीकृत करती है और आदर्शीकरण की इसी प्रक्रिया में उस कला का रहस्य छिपा रहता है।" ) हिन्दी साहित्य कोश
"कला में क्षोभ और श्रम का परिहार है, मन का रंजन और उद्बोधन है, विगत अनुभवों की सुखद पुनरावृत्ति है, यह सब मनुष्य ने जाना तभी तो आकांक्षा-मधुर कला-निमिति और कलानन्द का जन्म हुआ।"10 अरस्तु
"स्वभाव के माध्यम से मनुष्य विभिन्न वस्तुओं का अनुकरण करता है। कुछ कलाकार रंगों और मूर्तियों के द्वारा अनुकरण करते हैं तथा अन्य शब्दों द्वारा। अतः कला को प्रकृति का अनुकरण-मात्र नहीं माना जा सकता, इसे हम प्रकृति की पुनकृति कह सकते हैं।''11 ) "Man creates more adequate forms of beauty than he finds already in poetry existing in the world about him. Art is superior to Nature." 12- Hegal
अर्थात् मानव अपने चारों ओर सृष्टि में जो सौन्दर्य पाता है, वह उससे भी उत्कृष्ट सौन्दर्य कल्पना के सहारे निर्मित करता है और इस प्रकार कला प्रकृति से श्रेष्ठ है। टाल्सटाय
__"भावों को क्रिया, रेखा, रंग, ध्वनि या शब्द द्वारा इसप्रकार अभिव्यक्त करना कि उसे देखने या सुनने वाले में भी वही भाव जग जाए, वही कला
फ्रायड
"कला अवचेतन मन की अतृप्त वासनाओं का समुन्नत रूप है।"14 । टैगोर
"कला की मूल प्रेरणा सौन्दर्य-भावना है। सौन्दर्य का बोध हमें विश्व की विभूतियों में आनन्द की प्रतीति देकर हमारी कला को सुन्दर और सम्पन्न बनाता
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