Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन
देव आराधना
मनोरथ की सिद्धि के लिए मनौती मानने की परम्परा रही है। नाग व शिव आदि देवायतनों पर जाकर पूजा की जाती थी।" नागधर के संदर्भ में विश्वास था कि यहाँ जो भी कामना की जाती है, वह पूरी होती है । 112
वृक्ष-विश्वास
चैत्यवृक्ष, शाल, पीपल व अशोक के वृक्ष ज्ञान के प्रतीक व साधना के योग्य माने जाते थे। अरिष्टनेमि बारवती नगरी में अशोक वृक्ष के नीचे ठहरे 413 दीक्षार्थ जाते समय मल्ली की शिविका को भी अशोक वृक्ष के नीचे ठहराया गया। 14 मल्ली भगवती को अशोक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान हुआ | 415 दिशाओं से जुड़े विश्वास
प्रत्येक दिशा - विदिशा का अपना विशेष महत्व होता है । ज्ञाताधर्मकथांग में विविध प्रसंगों के साथ विविध दिशाओं का चयन भी किया गया है। दिशाओं से जुड़े कुछेक प्रसंग इस प्रकार हैं- चैत्य आदि का निर्माण नगर के बाहर ईशानकोण में किया गया । 16 देव भी वैक्रिय समुद्घात के लिए ईशानकोण का चयन करते हैं।417 उत्तर वैक्रिय की विकुर्वणा करने शैलक यक्ष भी ईशानकोण में गया। 418 ईशानकोण में निर्मित नागगृह सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाला था।479 प्रव्रज्या का संकल्प और स्वीकरण भी ईशानकोण में होता हुआ देखा जाता है 1420 कुल मिलाकर ईशान कोण का महत्व जैनागमों में अधिक माना है जैनेत्तर आगमों में नहीं । नंदमणिकार ने बावड़ी आदि का निर्माण वास्तुशास्त्रियों द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर करवाया। 21
विशिष्ट विचारों के पुद्गलों के आकर्षण के लिए पूर्व दिशा का आलंबन लिए जाने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है । धारिणी देवी के दोहदपूर्ति सम्बन्धी उपाय की खोज के लिए चिन्तन हेतु राजा श्रेणिक पूर्वाभिमुख बैठा । उपस्थानशाला में श्रेणिक ने 122, शिविकारूढ मेघ ने 123, अनशन के लिए भी मेघ ने पूर्वाभिमुखकता 124 स्वीकार की । राजा रूक्मी पुष्पमण्डप में 25 और मल्ली सिंहासन पर 26 पूर्वाभिमुख बैठे ।
लक्षण और व्यंजन से जुड़े विश्वास
ज्ञाताधर्मकथांग में लक्षण और व्यंजन से जुड़े विश्वास भी देखे जाते हैं । जो शरीर के साथ उत्पन्न हो वे लक्षण और जो बाद में उत्पन्न हो वे व्यंजन
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