Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 'वास' को वह कटि प्रदेश के नीचे सर्वदा पहने रहता था। गुरुकुल में वह कुश
की चटाई पर सोता था। ऋषि के आश्रम में रहकर छात्र अनेक प्रकार के नियम-संयम से परिचित हो जाता था।82 प्रायः छात्र को जूते, छाते और रथ
आदि के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई थी।83 शिष्य की अयोग्यताएँ
ज्ञाताधर्मकथांग में शिष्य की अयोग्यताओं के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन अग्रांकित घटना से स्पष्ट है कि शरीर के प्रति आसक्त रहने वाला व्यक्ति शिष्य बनने का अधिकारी नहीं है, गोपालिका आर्या तथा पुष्पचूला आर्या ने क्रमशः सुकुमालिका और काली आर्या को शरीरासक्त (सरीर वाउसिया) हो जाने के कारण शिष्यत्व से पृथक् कर दिया।184
उत्तराध्ययन सूत्र में विद्यार्थी की अयोग्यता का विवेचन करते हुए कहा गया है कि अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य इन पाँच दुर्गुणों से युक्त शिष्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।185 अविनीत शिष्यों की तुलना गलियार बैलों (खलंक) से की गई है, जो धैर्य न रखने के कारण आगे बढ़ने से जवाब दे देते हैं। ऐसे शिष्यों को यदि किसी कार्य के लिए भेजा जाए तो वे इच्छानुसार पंख निकले हुए हंस शावकों की भांति इधर-उधर घूमते रहते हैं। ऐसे कुशिष्यों को अत्यन्त कुत्सित गर्दभ (गलिगद्दह) की उपमा दी गई है। आचार्य ऐसे शिष्यों से तंग आकर उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ देते और स्वयं वन में तप करने चले जाते।186 मनु ने कहा है कि जिस शिष्य में धर्म तथा अर्थ न हो अथवा शिक्षानुरूप सेवावृत्ति न हो, उसे ऊसर समझकर विद्यारूपी बीज का दान नहीं करना चाहिए।187 गुरु-शिष्य सम्बन्ध
गुरु-शिष्य सम्बन्धों पर ही टिकी है- शिक्षण-अधिगम की नींव। इनके सम्बन्धों की प्रगाढ़ता शिक्षा की सफलता के लिए अनिवार्य है।
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसंधान से स्पष्ट होता है कि उस समय गुरु-शिष्य सम्बन्ध अत्यन्त स्नेहपूर्ण थे। शिष्य गुरु के घर पर जाकर अध्ययन करता था। मेघकुमार ने कलाचार्य के घर पर रहकर बहत्तर कलाओं का ज्ञान किया।188 गुरु उसे अपने परिवार के सदस्य के समान स्नेह देता था। शिष्य में विनय भावना विद्यमान थी। जम्बू, मेघकुमार व सुदर्शन आदि शिष्य गुरु से वार्तालाप
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