Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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11.
111.
iv.
धर्माचार्य
ज्ञान एवं कार्य की अपेक्षा से 156 -
i.
:
उत्थापनाचार्य
प्रव्राजनोत्थापनाचार्य
iii.
iv.
उद्देशाचार्य
वाचनाचार्य
उद्देशनाचार्य-वाचनाचार्य
न उद्देशनाचार्य न वाचनाचार्य
ज्ञाताधर्मकथांग में आचार्य के दो प्रकार बतलाए गए हैं
(i) धर्माचार्य (ii) कलाचार्य
मेघकुमार अपने धर्माचार्य भगवान महावीर के निकट सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता है।157 मेघकुमार 158 और थावच्चापुत्र 159 को निश्चित वयोपरान्त कलाचार्य के पास शिक्षार्थ भेजा गया ।
ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा
राजप्रश्नीय सूत्र में तीन 60 प्रकार के आचार्य बतलाए गए हैं(i) कलाचार्य (ii) शिल्पाचार्य (iii) धर्माचार्य
जो बहत्तर कलाओं की शिक्षा देते हैं, वे कलाचार्य, जो विद्वान आदि का ज्ञान कराते हैं, वे शिल्पाचार्य तथा जो धर्म का प्रतिबोध देने वाले हैं, वे धर्माचार्य कहलाते हैं ।
गुरु का महत्व
गुरु का स्थान हमारे समाज में सदैव पूजनीय रहा है। गुरु मुक्तिपथ प्रदर्शक होता है। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार 161, थावच्चापुत्र 162, शैलक 163, जितशत्रुराजा 164, द्रौपदी 165 व पुण्डरीक 166 आदि को गुरु ने मुक्ति पथ दिखलाया और वे उस पथ पर अग्रसर हुए।
दशवैकालिक सूत्र में आचार्य की गरिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है - 'जिस प्रकार प्रातः काल देदीप्यमान सूर्य समस्त भरतखण्ड को अपने किरण समूह से प्रकाशित करता है, ठीक उसी प्रकार आचार्य श्री श्रुत, शील और बुद्धि से युक्त हो उपदेश द्वारा जीवादि पदार्थों के स्वरूप को यथावत् प्रकाशित करता है तथा जिस प्रकार स्वर्ग से देवसभा के मध्य इन्द्र शोभता है, उसी प्रकार साधुसभा के मध्य आचार्य शोभता है। 167 इसी प्रकार चन्द्रमा की उपमा देते हुए कहा
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