Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
विधि शास्त्र, नीति, दैवविद्या, ब्रह्मविद्या, भूतविद्या, नक्षत्रविद्या, निरूक्त, धनुर्वेद, ज्योतिष, संगीत और शिल्प का उल्लेख मिलता है । ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा के अग्रांकित विषयों का प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से विवरण मिलता है
वास्तुशास्त्र
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भवन-निर्माण एवं शिल्प-विज्ञान का नाम वास्तुकला है । ज्ञाताधर्मकथांग में ' वत्थुविज्जं " शब्द वास्तुकला के रूप में प्रयुक्त हुआ है। नंदमणिकार श्रेष्ठी ने वास्तुपाठकों की सलाह से नंदा पुष्करिणी, वनखण्ड, चित्रसभा, भोजनशाला, चिकित्साशाला, अलंकार सभा आदि का निर्माण करवाया । "
सैन्य शिक्षा
ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित 72 कलाओं में चक्रव्यूह, सैन्य संचालन, अस्थियुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, लतायुद्ध आदि का उल्लेख मिलता है ।” मेघकुमार ने रथयुद्ध, अश्वयुद्ध, बाहुयुद्ध आदि युद्धकलाओं का प्रशिक्षण प्राप्त किया। नगररक्षक ने विजयचोर को अस्थि, मुष्टि व कोहनी आदि के प्रहार से पछाड़ा | 24 इस प्रकार स्पष्ट है कि तत्कालीन समय में सैन्य शिक्षा कलाओं के साथ ही दी थी। उस समय वर्तमान युग की सैन्य अकादमियों की तरह सैन्य शिक्षा के लिए कोई विशिष्ट संस्थान नहीं थे ।
तर्कशास्त्र
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ज्ञाताधर्मकथांग में 'जणवायं 5 शब्द का उल्लेख मिलता है, जिसका अर्थ है लोगों के साथ वाद-विवाद करना । इस संदर्भ में तर्कशास्त्र को एक विषय के रूप में स्वीकार करना उपयुक्त होगा । थावच्चापुत्र सुदर्शन" और शुक - थावच्चापुत्र” संवाद से भी इस बात को बल मिलता है कि तर्कशास्त्र की भी शिक्षा दी जाती थी । दर्शनशास्त्र
ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा के विषय के रूप में दर्शन का नामोल्लेख नहीं मिलता है लेकिन विभिन्न कथाओं के माध्यम से जनसामान्य को दर्शन की गहराईयों से सहजजाव से जोड़ने का, समझाने का सार्थक प्रयास किया गया है। मल्ली भगवती ने अपनी स्वर्ण प्रतिमा के माध्यम से जितशत्रु आदि छः राजाओं को पुद्गल के स्वभाव अर्थात् आत्मा व शरीर की भिन्नता से परिचय करवाया। पुनर्जन्म”, जाति - स्मरण, आत्मा, लोक-परलोक 102 आदि दर्शन के विभिन्न विषयों को भी निरूपित किया गया है।
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