Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन दोहद उत्पन्न हुआ। उद्यानों में विभिन्न प्रकार की लताएँ और फूल लगाए जाते थे, जिनमें चम्पा के फूल, सन के फूल, कोरंट के फूल, कमल, शिरीष कुसुम, कुन्द पुष्प, पाटला, मालती (Spanish Jasmine), चम्पा, अशोक, पुनांग, मरुआ, दमनक" (आर्टिमिसिया इंडिका) एवं विभिन्न जाति के कमल" (कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, सहस्रपत्र), प्रियंगुलता, अशोकवृक्ष, अशोकलता", वनलता, पद्मलता आदि का उल्लेख है। कोई भी उत्सव या समारोह पुष्पों के बिना संभव नहीं था। पाँच वर्गों की पुष्पमाला प्रसिद्ध थी। प्रजानन उत्सवों पर फूलों के आभूषण, विलेपन, अंगराग और मालाओं का उपयोग करते देखे जाते हैं। विशेष उत्सवों पर राजमार्गों सहित सभी मार्गों को पुष्पजलों, सुगंधित जलों एवं पुष्पों से सजाया जाता था। राज्योद्यान के मालियों का समाज में विशेष स्थान था। वे दिव्य एवं विशिष्ट माला बनाने में निपुण होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञाता होता है कि 'श्रीदामकांड' माला विशिष्ट और दिव्य होती थी 43
अन्तकृदशांग से ज्ञात होता है कि अर्जुन राजगृह का एक प्रतिष्ठित तथा सम्पन्न माली थी। उसने अपनी विशिष्ट पुष्पवाटिका में पाँच रंग के पुष्प लगा रखे थे। प्रात:काल वह अपनी पुष्वाटिका से पुष्प-चयन हेतु जाता और वहाँ से पुष्पचयन करके पुष्पों से भरी टोकरियाँ, बाजारों, हाटों में बेचकर धन अर्जित करता था।
जैन आगमों में गाँवों और नगरों के निकट ऐसे वनों, उपवनों के उल्लेख मिलते हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्यवर्द्धक औषधयुक्त फल होते थे। इन उपवनों में आम, शाल, जम्बूफल, पोलू, शेलू, अखरोट, सल्लकी, मालूक, बकुल, करंज, पलाश, मोचकी, सीसम, अरिष्ट, बहेड़ा, हरड़, भिलवा, अशोक, दाडिम, लूकच, शिरीष, मातुलिंग, चन्दन, अर्जुन, कदम्ब आदि के वृक्ष होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में सहस्रावन और आम्रशालवन' का उल्लेख है। आलोच्यग्रंथ से यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय उद्यान-उपवनों की रक्षा एवं देखभाल के लिए मालियों को रखा जाता था, जिन्हें वेतन भी दिया जाता था। पशु-पालन ___समाज में दूसरा प्राथमिक उद्योग पशुपालन था। आर्थिक दृष्टि से पशुओं का महत्वपूर्ण स्थान था। कृषि तथा यातायात मुख्य रूप से पशुओं पर ही
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