Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
ज्ञाताधर्मकथांग में एक स्थान पर जूतों का उल्लेख आया है। धन्य सार्थवाह अहिच्छत्रानगरी व्यापारार्थ जाने से पूर्व यह घोषणा करवाता है कि जिसके पास जो वस्तु नहीं होगी उसको वह वस्तुएँ दिलवाएगा, जिनमें जूते भी शामिल थे। 17 चमड़े से बने विविध वाद्यों का उल्लेख भी मिलता है। धारिणी देवी को मृदंग, झालर, पटह आदि का दोहद उत्पन्न हुआ। 118 चोर सेनापति चिलात ने चमड़े से बनी मशक से पानी पिया।" चमड़े से चाबुक बनाए जाते थे। विजय चोर को चाबुक से पीटा गया। 120 प्रज्ञापना में चम्मकार (चमार) का उल्लेख मिलता है। 121 वास्तु-उद्योग 122
ज्ञाताधर्मकथांग में सिंघाडग-तिय- चउक्क - चच्चर (शृंगाटक- त्रिक- चौकचौराह) आदि का वर्णन मिलता है। 123 इससे स्पष्ट होता है कि उस समय नगरनिर्माण योजनाबद्ध रूप से वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जाता था। 24 नन्दमणियार ने वास्तुशास्त्र विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार पुष्करिणी, महानसशाला, चिकित्साशाला, चित्रसभा आदि का निर्माण करवाया। 125 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वास्तुकला भी एक उद्योग के रूप में प्रचलित थी। प्रसाधन- उद्योग
श्रृंगारप्रियता और विलासप्रियता प्रसाधन उद्योग की उन्नति के परिचायक हैं । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि उस समय बाल, नाखून आदि कटवाने के लिए अलंकारसभा होती थी, जहाँ पर नापित (नाई) बाल काटने, हजामत बनाने, मालिश करने आदि का काम करते थे । 126
नन्दमणियार की अलंकारसभा में बहुत से आलंकारिक पुरुष जीविका, भोजन और वेतन पर रखे हुए थे।127 केसर आदि सुगंधित पदार्थों से लेप किया जाता था । 128 विशेष उत्सवों पर राजमार्गों को सुगंधित बनाया जाता था । 129 अलंकार सभा को हम आधुनिक ब्यूटीपार्लर कह सकते हैं।
खांड- उद्योग
उस समय खांड उद्योग अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्योग था । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख है कि. कनककेतु राजा के कौटुम्बिक पुरुष 'कालिक द्वीप' जाते समय अन्य वस्तुओं (माल) के साथ चीनी, गुड़, शक्कर आदि भी लेकर गए। 130 धन्य सार्थवाह भी विपुल मात्रा में खांड, गुड़ आदि लेकर व्यापारार्थ अहिच्छत्रानगरी गया था। 131 पुष्पोत्तर और पदमोत्तर जाति की विशिष्ट शर्करा होती थी । 1 32
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