Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति स्वयं ही इस पद को सम्भालता था।59 सारथी
रथ को संचालित करने वाला सारथी कहलाता है। योद्धा की सफलताविजय बहुत कुछ सारथी के कौशल पर निर्भर करती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में कृष्णवासुदेव के सारथी के रूप में दारूक नामक व्यक्ति का उल्लेख किया गया है।160 युद्ध के कारण
प्राचीन इतिहास के आधार पर कहा जा सकता है कि युद्ध के मुख्य रूप से चार कारण थे- (1) श्रेष्ठता का प्रदर्शन, (2) कन्या, (3) साम्राज्य-विस्तार, (4) स्वाभिमान की रक्षा । ज्ञाताधर्मकथांग में दो युद्धों का उल्लेख आया है, दोनों का कारण स्त्री या कन्या रही है। जितशत्रु आदि छ: राजाओं ने कुम्भ राजा की पुत्री मल्ली को प्राप्त करने के लिए मिथिला पर आक्रमण किया।61 पाण्डव व वासुदेवकृष्ण द्रौपदी को पुनः प्राप्त करने के लिए पद्मनाभराजा से युद्ध करते हैं। 62 युद्ध
ज्ञाताधर्मकथांग में युद्ध की पूर्व तैयारी तथा रणक्षेत्र के परिदृश्य को रेखांकित किया गया है। युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व कौमुदी भेरी163, शंख164 और सामरिक भेरी165 बजाई जाती थी। राजा युद्ध में जाते समय कोरंट के फूलों की माला वाला छत्र धारण करता था। राजा कवच धारण करता था।67 ___कृष्ण वासुदेव ने पद्मनाभराजा से युद्ध करने के लिए जाने से पूर्व पाञ्चजन्य शंख फूंका, उस शंखनाद से पद्मनाभराजा की सेना का तिहाई भाग हत हो गया। उसके बाद कृष्ण ने सारंग नामक धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। प्रत्यंचा की टंकार सुनकर पद्ममनाभ राजा की सेना का दूसरा तिहाई भाग हत हो गया। इस प्रकार सामर्थ्यहीन-बलहीन पद्मनाभ कृष्ण के प्रहार को सहन नहीं कर सकता और रणक्षेत्र से भाग खड़ा हुआ।168 ज्ञाताधर्मकथांग में अश्व युद्ध, रथ युद्ध, बाहु युद्धा69, मल्ल युद्ध और मुष्ठि युद्ध", सामान्य युद्ध, विशिष्ट युद्ध, अस्थि युद्ध, लता युद्ध आदि का उल्लेख मिलता है। युद्ध और मनोविज्ञान
युद्ध सिर्फ हथियारों या बाहुबल से नहीं जीते जाते बल्कि विजय के लिए मनोबल की मजबूती अनिवार्य है, ज्ञाताधर्मकथांग में यह तथ्य उभरकर सामने आया है। जब पाण्डव पद्मनाथ से युद्ध शुरू करते हैं, तब कहते हैं- 'आज हम हैं या पद्मनाथ राजा है।' पाण्डवों की हार होती है और पद्मनाथ राजा विजयी
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