Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा तालीम से है। गुरु के निकट विद्याभ्यास करना अथवा विद्याग्रहण करना शिक्षा है। दक्षता, निपुणता, उपदेश, मंत्र, सलाह आदि भी शिक्षा के पर्यायवाची शब्द है।'
शिक्षा को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है। इन परिभाषाओं का दिग्दर्शन इस प्रकार हैऋग्वेद में कहा गया है
'अपो महि व्ययति चक्षसे तमोज्योतिष्कृणोति" अर्थात् शिक्षा अज्ञानान्धकार दूर कर ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करती है। गीता के अनुसार
'सर्वभूतेषु येनैकं भावभव्ययमीक्षते। अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्विकम्।। अर्थात जिसके द्वारा सब प्राणियों में केवल एवं निर्विकार भाव देखा जाता है तथा विविधता में जहाँ एकता दिखाई देती है, उसी को सात्विक ज्ञान कहा जाता है।
गीता में ज्ञान को ही शिक्षा माना गया है तथा शिक्षा में केवल सात्विक ज्ञान को समाहित किया गया है। इस प्रकार यह परिभाषा यत्किंचित एकपक्षीय
उत्तराध्ययनचूर्णि में शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा गया है
_ 'सिक्खाते शिक्ष्यनते वा तमिति शिक्षा"
अर्थात् जो सिखाती है वह शिक्षा है या जिससे विद्या का ग्रहण होता है, वह शिक्षा है। कौटिल्य के मतानुसार
"शिक्षा मानव को एक सुयोग्य नागरिक बनना सिखाती है तथा उसके हृदय में जाति एवं प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न करती है।"
चाणक्य ने इस परिभाषा में शिक्षा को जाति व प्रकृति केन्द्रिय बनाते हुए सुयोग्य नागरिक निर्माण करने वाली बताया है जबकि शिक्षा के आध्यात्मिक क्षेत्र को पूर्णतः अछूता छोड़ दिया है। सुकरात के अनुसार
___ "शिक्षा का अर्थ है संसार के उन सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना जो कि प्रत्येक मानव के मस्तिष्क में स्वाभावतः निहित होते हैं।''
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