Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
प्रस्तुत परिभाषा में शिक्षा को वातावरण तथा सामाजिक परिवेश के साथ जोड़ा गया है। हुमायूं कबीर व्यक्ति के विकास और समाज के विकास को अलग-अलग मानते हैं जो कि तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि व्यक्ति और समाज का विकास तो परस्पर अवगुंथित है। डॉ. जगदीश सहाय के अनुसार
"शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य अपने आध्यात्मिक स्वभाव की सिद्धता को प्राप्त करता है, जो वास्तविक रूप में सामाजिक एवं सार्वभौम है। मनुष्य का व्यक्तित्व उसकी विशिष्टता में नहीं है बल्कि उसकी सामाजिकता और सार्वभौमिकता में है, जो मनुष्यों को एक-दूसरे से पृथक् न करके एक-दूसरे से सम्बद्ध करती है।"17
प्रस्तुत परिभाषा में शिक्षा को सामाजिक और सार्वभौमिक बतलाते हुए इससे मनुष्य की वैयक्तिक विशिष्टताओं को पृथक् रखा गया है। अल्तेकर के मतानुसार
"व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण, प्राचीन संस्कृति की रक्षा, चरित्र का संगठन एवं सामाजिक-धार्मिक कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए भावी पीढी को प्रशिक्षित करना ही प्राच्य शिक्षा पद्धति का ध्येय था।"18
अल्तेकर ने शिक्षा को एक प्रशिक्षण प्रविधि के रूप में परिभाषित करते हुए इसके ध्येय को स्पष्ट किया है। हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार
___ "शिक्षा वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के लिए बालक को तैयार करने की प्रक्रिया के रूप में ही हमारे सामने उपस्थित होती है।''19
वातावरण अनुप्रेरित इस परिभाषा में बालक के जन्मजात गुणों को ध्यान में नहीं रखा गया है। टी. रेमॉण्ट
"शिक्षा विकास का वह क्रम है जिससे व्यक्ति अपने आप को धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है। जीवन ही वास्तव में शिक्षित करता है। व्यक्ति अपने व्यवसाय, पारिवारिक जीवन, मित्रता, विवाह, पितृत्व, मनोरंजन, यात्रा आदि द्वारा शिक्षित किया जाता है। 120
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