Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि पुण्डरीकिणी नगरी के दो राजकुमारोंपुण्डरीक और कण्डरीक में से कण्डरीक ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली, लेकिन कुछ समय बाद संयम पालन में असमर्थ हो, दीक्षा छोड़कर लौट आया। यह देखकर उसके भ्राता पुण्डरीक ने कण्डरी को राज्य सौंप दिया और स्वयं श्रमणधर्म में प्रव्रजित हो गया।
किसी राजा के उत्तराधिकारी (पुत्र) एकाधिक होने पर ज्येष्ठ पुत्र को राजा बनाया जाता था और उससे कनिष्ठ पुत्र को युवराज बना दिया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि महापद्म राजा ने दीक्षा अंगीकार करने से पूर्व अपने ज्येष्ठ पुत्र पुण्डरीक का राज्याभिषेक किया और कनिष्ठ पुत्र कण्डरीक को युवराज बना दिया। राजा को उपहार
____ अधीनस्थ राजा, सामन्त, ऋषि एवं प्रजा अपने राजा को यथाशक्ति उपहार प्रदान करते थे। दिग्विजय, विवाहोत्सव, राज्याभिषेकोत्सव, विजयोत्सव या अन्य किसी शुभावसर पर उपहार प्रदान करने की प्रथा ज्ञाताधर्मकथांग में अनेक स्थलों पर देखने को मिलती है। हार, मुकुट, कुण्डल, रत्न, वस्त्र, कण्ठाहार, कवच, बाजूबन्द, कड़ा, करधनी, पुष्पमाला, कटिसूत्र आदि अनेक वस्तुएँ राजा को उपहार स्वरूप दी जाती थी। राजा के प्रकार
ज्ञाताधर्मकथांग में अग्रांकित प्रकार के राजाओं का उल्लेख मिलता है - 1. जो बाद में अरिहन्त बने- अरिष्टनेमि (1/5/7), मल्ली (1/8/181) 2. चक्रवर्ती- भरत (1/1/35) 3. वासुदेव- कृष्ण वासुदेव (1/5/5), कपिल वासुदेव (1/16/195) 4. मांडलिक- मेघकुमार (1/1/131) 5. क्षत्रिय- श्रेणिक (1/1/14), कुणिक (1/8/181) 6. दशार्ह- समुद्रविजय आदि 10 भाई (1/16/86), महावीर (1/16/186),
युवराज (1/16/86) राज्य का स्वरूप
एक समय ऐसा था जब न राजा था और न ही राज्य, सभी कार्य धर्म के अनुसार स्वतः होते थे। वह समय कल्पवृक्षों का था। धीरे-धीरे कल्प वृक्षों का
192