Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि सिक्कों का प्रचलन सीमित मात्रा में था। लेन-देन वस्तु-विनिमय पद्धति से परिसम्पन्न होते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में सिक्कों की ढलाई, आकार-प्रकार, मूल्य आदि के बारे में कोई संकेत नहीं मिलता है। संभवतः सिक्कों के रूप में बहुमूल्य धातुओं- सोनेचांदी आदि के निश्चित भार के टुकड़े प्रचलन में थे और उन पर किसी प्रकार का राज-चिह्न या मूल्य आदि अंकित नहीं होता था। निष्कर्ष
ज्ञाताधर्मकथांग के आर्थिक अनुसंधान के पश्चात् कहा जा सकता है कि तत्कालीन समय में अर्थव्यवस्था असि, मसि व कृषि केन्द्रित थी। कृषि लोगों का मुख्य धंधा था। कृषि पूर्णतः वैज्ञानिक विधि से विभिन्न उपकरणों की सहायता से की जाती थी। पशुपालन भी आजीविका का महत्वपूर्ण साधन था।
शिल्पकर्म, वस्त्र, धातु, भांड-बर्तन, काष्ठ, चित्र, चर्म, मद्य, वास्तु, प्रसाधन, खांड व तेल आदि के उद्योगों का अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान था। कहीं-कहीं विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों के संकेत भी मिलते हैं।
व्यापार सिर्फ स्थानीय ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होता था। व्यापार मुख्यतः स्थल और जलमार्ग से ही होता था। परिवहन के विभिन्न साधन- रथ, बैलगाड़ी, हाथी, घोड़ा, नौका, पोत, जलयान (पोतवहन) आदि प्रचलित थे।
माप-तौल की प्रणालियों के रूप में- गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य प्रचलन में थी। सिक्कों का चलन सीमित था। अधिकांश लेन-देन वस्तु विनिमय के माध्यम से होते थे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था सुदृढ़ और विकासोन्मुख थी।
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