Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन थे। 62 ज्ञाताधर्मकथांग से प्रकट होता है कि देवदत्ता गणिका, धन्य सार्थवाह'64 तथा थावच्चा गाथापत्नी के पास बहुत से यान-वाहन थे। ज्ञाताधर्मकथांग में हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका का उल्लेख मिलता है।166 इससे स्पष्ट है कि यह बहुत बड़ी और भव्य शिविका थी।
श्रेणिक राजा के पास सवारी के लिये हाथियों में श्रेष्ठ सेचनक नामक गंधहस्ती था।67 कृष्ण वासुदेव विजय नामक गंधहस्ती पर सवार होकर अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ गए थे।168
परिवहन के लिए घोड़ों का भी बहुविध उपयोग था। घोड़ों को स्वतंत्र सवारी के अतिरिक्त रथों में भी जोता जाता था। उन्हें आभूषण और सुनहरी जीनों से सुसज्जित किया जाता था। व्यापारिक स्थल-मार्ग - देश के विभिन्न व्यापारिक केन्द्र स्थल मार्गों से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार एक मार्ग चम्पा से अहिच्छत्र तक जाता था। इसी मार्ग से चम्पा का सार्थवाह धन्ना व्यापार के लिए गया था।70 एक स्थल-मार्ग चम्पा से गंभीर-पोतपट्टन के समीप तक जाता था। प्रसिद्ध पोतवणिक अर्हन्नक इसी मार्ग से गंभीर-पोतपट्टन तक अपनी गाड़ियों और शकटों के साथ पहुंचा
था।71
2. जलमार्ग
व्यापारिक दृष्टि से जलमार्गों का बहुत महत्व था। देश के बड़े-बड़े नगर जलमार्गों से जुड़े हुए थे। जलमार्गों से केवल देश के अंदर ही नहीं अपितु विदेशों में भी यात्रा की जाती थी। लोगों की यह धारणा थी कि समुद्र यात्रा से अधिक धनार्जन होगा, इसलिए व्यापारी धनार्जन की मंशा से समुद्री मार्गों से विभिन्न द्वीपों की यात्रा करते थे।72 ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि जलयानों में विविध प्रयोजनों के लिए स्थान नियत होते थे, यथा- यान के पिछले भाग में नियामक का स्थान, अग्रभाग में देवता की मूर्ति, मध्यभाग में काम करने वाले कर्मचारियों और पार्श्व भाग में नाव खेने वाले कुक्षिधरों का स्थान होता था। समुद्र यात्रा की निर्विघ्नता अनुकूल वायु पर निर्भर होती थी, अतः समुद्री हवाओं का ज्ञान रखना अत्यन्त आवश्यक था। प्रमुख पोत-वणिक अर्हन्नक ने अनुकूल हवा होने पर गंभीरपतन से चम्पा हेतु प्रस्थान किया था।74
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