Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन राजा कुम्भ ने कुण्डल युगल की जोड़ (संधि) सांधने में असमर्थ सुवर्णकार श्रेणी को निर्वासित कर दण्डित किया था।" उद्योगशालाएँ
उद्योगों के लिए भूमि का कोई अभाव नहीं था। नगरों और गाँवों के बाहर पर्याप्त भूमि थी, जहाँ शिल्पशालाएँ अथवा कर्मशालाएँ बनाई जाती थीं और वहाँ शिल्पी अपना कार्य करते थे। नन्दमणियार सेठ ने भी नगर के बाहर चित्रसभा, महानसशाला, चिकित्साशाला और अलंकार सभा का निर्माण करवाया।” नगर का वातावरण दूषित न हो इसलिए उद्योगशालाएँ नगर के बाहर हुआ करती थी। इससे स्पष्ट है कि लोग पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सजग थे। वस्त्र-उद्योग
ज्ञाताधर्मकथांग में यद्यपि वस्त्र उद्योग का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन विभिन्न प्रकार के वस्त्रों के उल्लेख के आधार पर कहा जा सकता है कि तत्कालीन समय में वस्त्र उद्योग अत्यन्त उन्नतावस्था में था। धारिणी देवी के शयनकक्ष में कसीदा काढ़े हुए क्षौम-दुकूल का चद्दर बिछा हुआ था। वह आस्तरक, मलय, नवत, कुशक्त, लिम्ब और सिंहकेसर नामक आस्तरणों से आच्छादित था। उस पर लगी मसहरी का स्पर्श आजिनक (चर्म का वस्त्र), रुई, बूर नामक वनस्पति और मक्खन के समान नरम था। श्रेणिक राजा ने पक्षी के पंख के समान अत्यन्त कोमल, सुगन्धित और कषाय (कषैले) रंग के रंगे हुए वस्त्र से शरीर का पोंछा ।32 धारिणी देवी ने चिन्तन किया कि वे माताएँ धन्य हैं जिन्होंने ऐसा वस्त्र पहना हो जो नासिका के निश्वास की वायु से भी उड़ जाए अर्थात् अत्यन्त बारीक हो, उत्तम वर्ण और स्पर्श वाला हो, घोड़े के मुख से निकलने वाले फेन से भी कोमल और हल्का हो, जिसकी किनारियाँ सुवर्ण के तारों से बुनी गई हों तथा स्फटिक के समान उज्जवल हो। ऐसा ही वस्त्र मेघकुमार ने अपनी दीक्षा से पूर्व धारण किया।
___ मेघकुमार की माता धारिणी थावच्चा सार्थवाही और प्रभावती रानी ने क्रमशः अपने पुत्र व पुत्री के आभरण हंस के चिह्नवाली साड़ी के ग्रहण किए। कनककेतु के कौटुम्बिक पुरुष आकीर्ण अश्व लेने के लिए कालिक द्वीप जाते समय अपने साथ कोयतक (रुई के बने वस्त्र) , कम्बल (रत्न कम्बल), प्रावरण (ओढ़ने के वस्त्र), नवत-जीन, मलय (मलय देश के बने वस्त्र),
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