Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन सूप, पाटा, मेढ़ी आदि प्रमुख हैं। खेतों की सुरक्षा
जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए भांति-भांति के उपाय किए जाते थे। खेतों के चारों ओर कांटेदार बाड़ लगाई जाती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि रोहिणी ने कौटुम्बिक पुरुषों को खेती को सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर बाड़ लगाने का आदेश दिया। प्रमुख उपज
ज्ञाताधर्मकथांग में शालि' (चावल), सरिसवया (सरसों), धान्यमाष (उड़द), अरस (हींग), चना, अनेक प्रकार के फल (नामोल्लेख नहीं है), मालुक" (ककड़ी), तंडुल", आम, किंशुक, कर्णिकार (कनेर), बकुल, नारियल, नन्दीफल, कड़वा तुम्बा, मीठा तुम्बा'", शाक, मसाले" आदि फसलों का उल्लेख मिलता है।
____ आचारांग में शाक-सब्जी के खेत, बीज प्रधान खेत और शालि, ब्रीहि, माष, मूंग, कुलत्थ आदि धान्यों की खेती का उल्लेख मिलता है। सूत्रकृतांग में शालि, ब्रीहि, कोद्रव, कंगु, परक, राल आदि धान्यों की खेती का उल्लेख आया है।" उपज की कटाई
जब धान्य पक जाता था तो उसे काटने का प्रबन्ध किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में फसल काटने के कार्य को 'लुणेति' कहा गया है। प्रायः कृषक फसल काटने का कार्य स्वयं ही करते थे। वे बड़ी सावधानी से धान्य को पकड़कर तीक्ष्ण धारवाली असियएहिं (द्रांति, हंसिया) से काटते थे। काटने के बाद धान्य को खलिहान में, जिसे 'खलवाड़ा' (कोठार, पल्य) कहते थे, एकत्र करते थे। पंक्तिबद्ध बैलों से धान्य की मड़ाई की जाती थी, जिसे 'मलन' कहा जाता था। धान्य को भूसे से अलग करने के लिए सूप से फटका जाता था24 अथवा वायु की दिशा को देखते हुए धान्य को ऊपर से नीचे गिराया जाता, जिससे धान्य और भूसा अलग-अलग हो जाते। (धान्य की अल्प मात्रा को ही सूप से फटका जाता है अधिक मात्रा होने पर हवा की दिशा में उपरोक्तानुसार उफणा जाता है आज ये सभी कार्य थ्रेसर या ट्रेसर से एक साथ हो जाते हैं।)
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