Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन
ते हैं 174
निर्धनता एवं बेकारी भिक्षावृत्ति - ज्ञाताधर्मकथांग के कुछेक संदर्भों से समाज में व्याप्त निर्धनता का स्पष्ट आभास होता है। निर्धनता की मार से मलिन, गंदे, मैले-कुचैले चीथड़े पहने हुए एवं हाथ में सिकारे एवं घड़े का टुकड़ा लिए हुए एक भिखारी का उल्लेख मिलता है। 75 लोग याचकों को दान देते थे और दानशालाएँ खुलवाते थे, जहाँ उन्हें भोजनादि दिए जाते थे 1476
मद्यपान - अनेक प्रसंगों में मद्यपान का प्रचलन सूचित होता है। सुरा, मद्य, सीधु और प्रसन्ना आदि नाना प्रकार के मद्यों का उल्लेख है । 477 मदन त्रयोदशी आदि अनेक उत्सवों पर लोग मद्यपान करते थे । 178 द्रौपदी के स्वयंवर में आए राजाओं के लिए भोजन व्यवस्था के साथ-साथ मद्यपान की व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता है । 479 धन्य सार्थवाह का चिलात दास चेटक भी मदिरापान में आसक्त रहता था । 480 चिल्लात चोर अपने अन्य चोर साथियों के साथ बहुत अधिक मदिरा का सेवन करता था ।481 द्यूत 2 - नगरों में द्यूतक्रीड़ा अर्थात् जुआ खेला जाता था। दास चेटक 483 और चिलात चोर484 जुआ खेलने में आसक्त हो गए थे I
अज्ञानता एवं अभिमान- उस समय समाज में अज्ञानता एवं उसके कारण दंभ विद्यमान था । राजा कनकरथ अपनी सत्ता में इतना अधिक आसक्त था कि उसकी सत्ता कोई छीन न ले इसलिए वह अपने सभी पुत्रों को उत्पन्न होते ही अवयवविकल (विकलांग) कर देता था । यह करनकरथ राजा की अज्ञानता व अभिमान ही था । 185 शायद वह नहीं जानता था कि इस संसार में कोई शाश्वत रहने वाला नहीं है, सभी को एक दिन यहाँ से जाना है ।
मांस भक्षण-परस्त्रीगमन - उस समय समाज में मांस को बहुत शौक से खाया जाता था। भले-बुरे सभी लोग समय-समय पर मांस भक्षण करते थे । विशेष उत्सवों एवं प्रसंगों पर इसका प्रचलन अधिक देखा जाता है 1986 धन्य सार्थवाह और उसके पाँचों पुत्र मृत सुंसुमा का मांस खाकर अपने जीवन की रक्षा करते हैं।487 चोर आदि व्यभिचारी पुरुष परस्त्रीगमन भी करते थे 1488
झूठ - छल-कपट एवं छद्मवेश- समाज में झूठ बोलने वाले लोग भी
153