Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
महावीर ने प्राणिमात्र की रक्षा करने का उद्बोधन दिया। धर्म के इस अहिंसामय रूप ने संस्कृति को अत्यन्त सूक्ष्म और विस्तृत बना दिया । '
प्राचीन भारतीय संस्कृति या आर्य संस्कृति सचमुच इतनी विशाल और उदार है कि उसमें विश्व संस्कृति के सभी महत्वपूर्ण अंश समाहित हैं। भारतीय का आदर्श वाक्य 'वसुधैव कुटुम्बकम्'।
इस प्रकार स्पष्ट है कि हमारे पूर्वजों ने अपनी संस्कृति को भौगोलिक सीमाओं में बाँधने का प्रयास नहीं किया, अपितु भारतेतर में भी इसका प्रचारप्रसार किया। भारत के वैदेशिक व्यापार तथा प्राचीन भारतीयों की धर्म-प्रचार वृत्ति के कारण इस संस्कृति का विश्वव्यापी प्रभाव-प्रसार संभव हुआ।
राष्ट्र की उत्कृष्टतम थाती संस्कृति ही होती है । संस्कृति ही राष्ट्र का प्राण होती है । राष्ट्र का आद्योपान्त जीवन अर्थात् उसका जीवन-मरण, सुख-दुःख, प्रतिष्ठा-अप्रतिष्ठा, उन्नति- अवनति आदि सब कुछ उसकी संस्कृति पर ही आधारित रहता है। श्रेष्ठ और उदात्त संस्कृति आने वाले युग की संस्कृति और समाज की न्यूनाधिक मात्रा में किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित करती है ।
राष्ट्र के प्राण उस समय की साहित्यिक कृतियों में स्वाभाविक रूप से समाहित रहते हैं। साहित्य से संस्कृति को अलग नहीं किया जा सकता, संस्कृति फूल और सुगन्ध के समान एकमेक है । वास्तव में साहित्य किसी देश की वह सम्पत्ति है जिसमें उस देश की गौरवगाथा और पूर्ववर्ती जनजीवन के विविध सांस्कृतिक आयाम निहित होते हैं । वह अपने युग की परम्पराओं, आदर्शों, मूल्यों व गतिविधियों की पथ - द्रष्टा है ।
वस्तुतः संस्कृति उस सुरभि के समान है जो समीर के साथ मंद गति से चहुँ ओर फैलती रहती है, उसे बाधित करना या रोकना अत्यन्त कठिन कार्य है, ठीक इसी प्रकार संस्कृति को शब्दों की कारा में कैद करने से उसकी प्रवाहशीलता में ठहराव आ जाएगा, जो किसी दृष्टि से श्रेयस्कर नहीं कहा जा सकता। आत्मत्त्व भांति संस्कृति का स्वरूप भी शब्दों में व्यक्त करना दुष्कर है।
'संस्कृति' की व्युत्पत्ति
'संस्कृति' एक व्यापक शब्द है जिसकी धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, आर्थिक एवं साहित्यिक आदि विभिन्न संदर्भों में व्याख्या की गई है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार 'संस्कृति' शब्द 'सम्' उपसर्गपूर्वक 'कृ' धातु से 'सुट्' का
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