Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन कोष भाग 4 तथा देखिये युवा श्री मधुकर मुनि वाले ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र पृ. 163) में उक्त सूत्र का विवेचन (1/2/3), सहस्राम्रवन (1/8/91, 1/16/221), सुभूमिभागोद्यान (1/3/28, 1/16/2, 1/7/2, 1/5/53) ।
उक्त प्रसंगों के आधार पर कहा जा सकता है कि उस समय लोग भ्रमण करते थे। उत्सव-महोत्सव एवं पर्व आदि पर एकत्र होकर आनन्दोत्सव मनाते थे। जब विचरण करते हुए कोई साधु-मुनिराज पधारते तो वे प्रायः उद्यान एवं वन आदि में ठहरते और वहाँ उनका धर्मोपदेश होता था। उसे सुनने के लिए गाँव एवं नगरवासी सभी आते थे। राजा अपनी परिषद् के साथ दर्शनार्थ व धर्मदेशना सुनने हेतु जाते थे।
चैत्य
चैत्य शब्द के अनेक अर्थ हैं यथा- उद्यान, वृक्ष, ज्ञान, देवकुल आदि। ज्ञाताधर्मकथांग में चैत्यों का भी उल्लेख मिलता है- आम्रशालवन नामक चैत्य (2/1/12), काममहावन नामक चैत्य (2/3/4), कोष्ठकनामक चैत्य (2/2/ 49), गुणशील चैत्य (1/2/2, 1/250, 1/10/2, 2/3/53), नागगृह चैत्य (1/8/ 37), पूर्णभद्र चैत्य (1/1/2, 1/9/2, 1/12,25, 1/15/2), सहस्राम्रवन नामक चैत्य (2/5/67)।
चैत्यों के निर्माण की परम्परा भी प्राचीनकाल से रही है। यद्यपि वर्तमान में चैत्य नाम से कोई उपलब्ध नहीं होता किन्तु आगम साहित्य में अनेक प्रकार के चैत्यों के उल्लेख प्राप्त होते हैं।
वृक्षादि वनस्पति
ज्ञाताधर्मकथांग में निम्नलिखित वृक्षादि-वनस्पति के नाम आए हैं
अर्जुन वृक्ष (1/9/22), अशोक वृक्ष (1/8180, 1/14/54, 1/19/17), आम्र वृक्ष (1/8/180), कदम्ब (1/13/20), कुटज (1/9/22), गिरीष (1/9/ 25), कोरंट (1/13/31, 1/16/14), चम्पक वृक्ष (1/18/33), दावद्रव (1/ 11/5), नन्दीफल (1/15/9), नारियल (1/8/54), निउर वृक्ष (1/9/22), नीम (1/16/6), पुनांग (1/8/27), बकुल, तिलक वृक्ष (1/9/25), सन वृक्ष, सप्तच्छद (1/9/23)।
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