Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन विकास संतान से। निःसंतान दम्पत्ति अपने आपको अपूर्ण और अभागा मानते हैं । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि जब धन्य सार्थवाह की पत्नी भद्रा के कोई संतान नहीं हुई तो वह अपने आपको अपूर्ण और अभागिन मानने लगी और उन माताओं को धन्य मानती थी जो बच्चों को जन्म देती, उनका लालन-पालन करती 13 संतान प्राप्ति की अभिलाषा से भद्रा ने अनेक देवी-देवताओं की मनौती की, लेकिन भद्रा की यह विशेषता रही कि उसने संतान की तो कामना की लेकिन पुत्र ही हो ऐसा नहीं कहा, इससे सिद्ध होता है कि उसने पुत्र-पुत्री को समान समझा 104
तत्कालीन समय में पुत्र अपने माता-पिता का पूर्ण सम्मान और आदर करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में पुत्र का माता -1 -पिता के प्रति स्वाभाविक सम्मान अभयकुमार, मेघकुमार", थावच्चापुत्र' 7 और धन्य सार्थवाह के पुत्रों" के प्रसंगों में देखने को मिलता है । अभयकुमार माता धारिणी के दोहद प्रसंग से चिन्तित पिता श्रेणिक की चिन्ता दूर करने एवं माता का दोहदपूर्ण करने का संकल्प ही नहीं करता बल्कि पूर्ण प्रयास के द्वारा उसे पूरा भी करता है ।" ज्ञाताधर्मकथांग के ही एक अन्य प्रसंग में धन्य सार्थवाह और उसके पुत्र सुंसुमा की खोज करते हुए भूख-प्यास से क्लान्त हो जाते हैं तब पिता के द्वारा अपने शरीर का उत्सर्ग कर उससे भूख-प्यास शान्त करने के लिए कहा जाता है, लेकिन पुत्र यह कहकर इन्कार कर देते हैं कि आप हमारे पूजनीय और देवतुल्य हैं, अतः आप इस कार्य के लिए हमारे शरीर का उपयोग करें।" इससे पुत्रों का अपने पिता के प्रति आदर और अहोभाव प्रकट होता है ।
ज्ञाताधर्मकथांग में पुत्र को कुलकेतु, कुलदीप, कुलतिलक, कुलवृक्ष और कुल का आधार उसकी महिमा प्रकट की गई है।"
पुत्री
पुत्री अथवा कन्या हिन्दू संयुक्त परिवार में पुत्र की तुलना में उपेक्षित रही है, किन्तु ज्ञाताधर्मकथांग में दोनों (पुत्र और पुत्री) का समान महत्त्व अनेक प्रसंगों में देखने को मिलता है- भद्रा द्वारा देवपूजा में पुत्र या पुत्री कुछ भी होने पर उनकी (देवताओं) पूजा करने की प्रतिज्ञा की जाती है।2 मल्ली का जन्माभिषेक देवताओं द्वारा करना भी लड़की के प्रति प्रीतिभाव दर्शाता है । धन्य सार्थवाह अपनी पुत्री को उतना ही चाहता है जितना पुत्रों को, इसीलिए वह पुत्री का अपहरण हो जाने पर तथा उसका वध हो जाने पर चिन्तित और दुःखी ही नहीं
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