Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन थी। कन्या का जन्म माता-पिता के लिए अभिशाप न होकर प्रीति का कारण होता था। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित है कि माता-पिता अपनी कन्याओं का लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा पुत्रों के समान ही किया करते थे। मल्ली भगवती214, सुकुमालिका15, द्रौपदी16 और सुंसुमा217 का लालन-पालन इस बात को पुष्ट करता है।
कन्या के विवाह योग्य होने पर माता-पिता को उसके विवाह की चिन्ता सताने लगती थी।18 युवावस्था में कन्या का विवाह पिता उसके योग्य वर से करता था।19 इसके अतिरिक्त कन्याओं द्वारा स्वयंवर का चयन करने की स्वयंवरपद्धति भी प्रचलित थी।20 कन्या के विवाह के समय ससुराल पक्ष और मातृपक्ष दोनों ही कन्या की सुख-सुविधा के लिए उसे प्रीतिदान देते थे।21 कन्याओं के लिए पृथक् अंत:पुर होता था।22 वह दासियों के साथ223 और स्वतंत्रता पूर्वक अकेली224 भी गेंद आदि से खेलकर अपना मनोरंजन करती थी। युद्ध जैसी भीषण स्थिति में भी कुम्भ राजा द्वारा अपनी पुत्री की सलाह को न टालना225 परिवार में कन्या की महत्ता का परिचायक है।
सम्पन्न कुलों में निजी सेवा या बालक का पालन-पोषण करने के लिए धाय रखने की परम्परा भी प्रचलित थी। मेघकुमार-26, द्रौपदी227 तथा मल्ली का लालन-पालन पाँच धायों के द्वारा हुआ। धाय का स्थान अन्य परिचारिकाओं से अधिक सम्मानपूर्ण था। द्रौपदी के स्वयंवर में साथ जाने वाली धाय पढ़ी-लिखी थी228, इससे स्पष्ट होता है कि उस समय की धाएं भी पढ़ी-लिखी और होशियार थी।
उस समय नारी का एक रूप 'दासी' भी प्रचलन में था। दासियाँ सदैव अपने स्वामी की सेवा में के लिए तत्पर रहती थी।29 दासियाँ भेंट अथवा दहेज में भी जाती थी। मेघकुमार की पत्नियों30 और द्रौपदी31 को दासियाँ दहेज में दी
गई।
रानियों के लिए दासियों का प्रावधान था, जो उनकी सेवा में रत रहती थी और संग परिचारिकाएँ शरीर मर्दन करती थी। रानी के उदास होने पर राजा को उसकी मनःस्थिति से अवगत भी कराती थी।32
स्वदेशी के साथ-साथ विदेशी दासियों का प्रचलन भी था।233 राजा को पुत्र प्राप्ति की सूचना देने वाली दासी को दासत्व से मुक्त करने का उल्लेख भी मिलता है। इस अवसर पर दासी को पुरस्कार स्वरूप विपुल धन-सम्पदा भी
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