Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
में जाते समय द्रौपदी ने भी श्रेष्ठ नूपुर धारण कर रखे थे।32
पहनने के इन आभूषणों के अलावा सोने-चांदी के कलश333, रत्न निर्मित मूल्यवान डिब्बियाँ34, मूल्यवान सारभूत द्रव्य के रूप में हिरण्य, कनक, रत्न, मणि, मुक्ता, शंख, शिला, प्रवाल, लाल रत्न व मूंगा आदि का उल्लेख भी ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है।35 इन द्रव्यों को रखने के लिए मंजूषा का उपयोग किया जाता था।336
ज्ञाताधर्मकथांग में सुवर्णकारों का उल्लेख हुआ है, जो सभी प्रकार के आभूषण बनाने में कुशल थे।37 इससे स्पष्ट होता है कि उस समय सुवर्णकारों की श्रेणी होती थी, जिनसे आभूषण बनवाए जाते थे।
प्रसाधन- ज्ञाताधर्मकथांग में प्रसाधन सामग्री और उसके प्रयोग का वर्णन मिलता है। स्त्री और पुरुष दोनों ही प्रसाधन प्रिय थे। ज्ञाताधर्मकथांग में प्रसाधन-श्रृंगार से पूर्व मर्दन, उन्मर्दन, मजन और लेपन आदि का उल्लेख भी प्राप्त होता हैi. मर्दन (संबाधन)- मर्दन का अर्थ मालिश करने से है। राजा
श्रेणिक ने शतपाक तथा सहस्रपाक आदि श्रेष्ठ सुगंधित तेल और चार प्रकार के संबाधना (अस्थियों को सुखकारी, मांस को सुखकारी, त्वचा को सुखकारी एवं रोमों को सुखकारी) से मालिश करवाई 1338 इसी प्रकार एक भिखारी की मालिश करने का उल्लेख भी आया
है।39 ii. उन्मर्दन- ज्ञाताधर्मकथांग में सुवासित गंध द्रव्य से शरीर पर उबटन
करने का उल्लेख भी मिलता है।340 इससे शरीर का मैल दूर होता है। iii. मज्जन- मज्जन यानी स्नान करना। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता
है कि स्नान करने के लिए अनेक प्रकार के जल का प्रयोग होता था। स्नान के लिए शुभ जल, पुष्प मिश्रित जल, सुगंध मिश्रित जल, शुद्ध जल341, उष्णोदक, गंधोदक, शीतोदक.42 प्रयुक्त होते थे। स्नान सामान्य तालाब आदि में जलक्रीड़ा करते हुए भी किया जाता था343 और विशिष्ट स्नानागार, जो मनोहर जालियों, चित्रों, विचित्र मणियों और रत्नों के फर्श वाले थे, में भी शुभ या सुखजनक सुगंधित जल से उत्तम मांगलिक विधि से भी किए जाने का उल्लेख मिलता है।344
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