Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन iv. लेपन- शरीर को सुगंधित एवं सौन्दर्यपूर्ण बनाने के लिए अनेक
प्रकार के विशिष्ट द्रव्यों का उपयोग होता था। ज्ञाताधर्मकथांग में गोशीर्ष चन्दन व केसर आदि से लेपन करने का उल्लेख मिलता
है।345 v. शेखर- ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि देवदत्ता गणिका
के मस्तक पर पुष्पों का शेखर रचा गया अर्थात् जूड़ा बांधा गया।346 vi. महावर- यह पैरों को रंगने की एक प्रसाधन सामग्री है। इसे
अलात भी कहते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में देवदत्ता गणिका के पैरों में
महावर लगाने का उल्लेख आया है।347 vii. पुष्पमाला- ज्ञाताधर्मकथांग में प्रसाधन के लिए पुष्पमालाओं को
धारण करने का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है।348 viii. अंजन/काजल- ज्ञाताधर्मकथांग में अंजन या काजल शब्द का
उपमा के रूप में प्रयोग हुआ है।49 इससे प्रतीत होता है कि उस
समय अंजन का प्रचलन था। ix. कौतुक- ज्ञाताधर्मकथांग में कौतुक करने का संकेत भी मिलता
है। स्नान करने के पश्चात् बलिकर्म आदि करके स्त्री-पुरुष दोनों
ही कौतुक (प्रायश्चित) करते थे।350 x. दर्पण- ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि जब द्रौपदी स्वयंवर
में गई तो उसके साथ चलने वाली धाय के हाथ में एक दर्पण था, जो स्वाभाविक घर्षण से युक्त और तरूणजनों में उत्सुकता उत्पन्न करने वाला था और उसकी मूठ विचित्र मणिरत्नों से जटित थी।351 इस प्रसंग से अनुमान लगाया जा सकता है कि लोग प्रसाधन से
निखरे रूप को निहारने के लिए दर्पण काम में लेते थे। xi. अलंकार सभा- ज्ञाताधर्मकथांग में शरीर-शृंगार हेतु नाई की दुकान
-अलंकार सभा का वर्णन मिलता है, जहाँ हजामत बनवाना, नाखून कटवाना आदि प्रसाधन कार्य होते थे।352 प्राचीनकाल से लेकर आज तक अलंकार सभा प्रचलन में है, हालांकि आधुनिक युग में ये ब्यूटी पॉर्लर के रूप में सामने आ रहे
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