Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन मिली उस समय उसके परिजन खुशी से झूम उठे और सभी ने धन्य सार्थवाह से गले मिलकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की । 101
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लोग मिलने पर सबसे पहले एक-दूसरे की कुशलक्षेम पूछा करते थे धन्य सार्थवाह से भी सभी ने कुशलक्षेम पूछी। 102 चोक्खा परिव्राजिका ने भी जितशत्रु राजा से राज्य सहित अन्तःपुर के कुशल समाचार पूछे। 103 इसी प्रकार कच्छुल्ल नारद ने भी पाण्डु राजा से अन्तःपुर सहित समस्त राज्य के कुशल समाचार पूछे। 104
बड़े लोग छोटों को " हे जम्बू ! 105, हे मेघ ! 10%, हे नन्द ! हे भद्र! हे जगन्नन्द ! 107, हे पुत्र !108, हे देवानुप्रिय ! 109, हे पुत्री ! 10" आदि सम्मानसूचक शब्दों से संबोधित करते थे ।
इसी प्रकार बड़ों के लिए " हे तात! 111, हे देवी! 112, हे देव ! 113, हे नाथ ! आर्य!, हे पितामह!, हे भ्रात !, हे मामा ! हे भागिनेय ! 114 हे स्वामिन ! हे पूज्य ! 115 11 आदि सम्मानजनक सम्बोधनों से संबोधित करके बातचीत की जाती थी। छोटेबड़े सभी विशेष रूप से 'देवानुप्रिय' शब्द का प्रयोग करते थे जो कि बहुत ही कर्णप्रिय शब्द है ।
बड़ों की आज्ञा मानना तथा उनके प्रति विनय का भाव रखना उस समय के शिष्टाचार का महत्वपूर्ण अंग था ।
ज्ञाताधर्मकथांग में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा स्वीकार करते हुए एवं विनयशील देखा जा सकता है, चाहे वे राजा श्रेणिक के कौटुम्बिक पुरुष हों 16, चाहे श्रीकृष्ण के राजकर्मचारी हों 17, चाहे गुरु के शिष्य हों 18, पिता का पुत्र हो, पिता की पुत्री हो 120 और चाहे राजा का मंत्री हो 21, सभी को आज्ञापालन करते हुए देखा जा सकता है।
बड़ों को विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ जाने की परिपाटी थी। नदी या तालाब तक पहुँचाना शुभ और परम्परानुकूल माना जाता था। जब अर्हन्नक व्यापार के लिए घर से रवाना हो रहा था तब उनके परिजन उसे समुद्रकिनारे तक पहुँचाने आए। 122 किसी महापुरुष या श्रमण के आने पर उनके दर्शनार्थ सभी लोग जाते थे । कच्छुल्ल नारद के आने पर राजा पाण्डु 123 और पद्मनाथ राजा 124 उनके सम्मान के लिए सात-आठ कदम आगे जाकर अगवानी करते हुए देखे जाते हैं। द्रौपदी के स्वयंवर में आए सभी राजाओं के सत्कार
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