Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन परम्परा रही है। हालांकि अभिमन्यु-वध, द्रोणाचार्य-वध, बाली-वध आदि अपवादजनक घटनाएँ भी भारतीय इतिहास में देखने को मिलती है लेकिन सामान्यतया क्षणिक विजय सा उन्माद में भी धर्म युद्ध की परम्पराओं को भंग नहीं किया जाता था। 14. नारी का सम्मान
भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत सम्मानीय स्थान दिया गया है। वह माता, बहन, पत्नी और सखी के रूप में प्रेरणा का स्रोत बनी रही है। नारी जगतजननी है, दुर्गा है। हमारे समाज में माता का त्याग पिता से भी अधिक माना गया हे, अतः उसका स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्वीकार किया गया है। मनुस्मृति में कहा गया है कि नारी का स्वरूप सर्वत्र पूज्य है। जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहाँ देवता रमण करते हैं
___ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।" भारतीय समाज में ऐसी नारियाँ भी हुई हैं जिन्होंने अपने स्वरूप की सार्थकता को सिद्ध किया है। यही कारण है कि नारी को नर की खान माना गया है। सती सीता, सावित्री, दमयंती, मैत्रेयी, पद्मिनी, अहिल्या, सती अंजना, झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, भामति आदि ऐसी नारियों के उदाहरण हमारे इतिहास में मिलते हैं, जिनसे भारतीय समाज गौरव का अनुभव करता है। तीर्थंकर की माता को स्वयं देवेन्द्र नमस्कार करता है।
भारतीय नारी ने परिवार और समाज के प्रति ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानवता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। वह हमारे ऋषियों-मुनियों तथा आचार्यों की पत्नियों के रूप में ज्ञान की वाहिनी बनी, समाज को सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया, उसने अपने तप, यज्ञ और साधना से सम्पूर्ण विश्व के शुद्धिकरण का महत्वपूर्ण कार्य किया है। 15. वर्णाश्रम व्यवस्था
__ भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम व्यवस्था को सर्वाधिक महत्व प्राप्त है। ऋग्वेद के एक श्लोक में इस व्यवस्था का परिचय इस प्रकार मिलता है
'ब्रह्मणोऽस्य मुखमासीद्, बाहुराजन्य कृतः। उदरस्यास्या यद्देश्यः, पद्भ्यांशूदोऽजायतः।।73
58.