Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण भूखण्डों को द्वीप कहते हैं। एक के पश्चात् एक के क्रम से ये असंख्यात हैं। लवण समुद्र में अन्तर-अन्तर पर द्वीप होने से अन्तर्वीप कहलाते हैं (जीवाजीवाभिगम सूत्र 3/108)। इनके अतिरिक्त सागर में स्थित छोटे-छोटे भूखण्ड अन्तर्वीप कहलाते हैं। यहाँ युगलिक मनुष्य रहते हैं। लवण समुद्र में ये 56 हैं। अन्य समुद्रों में नहीं है। असंख्यात द्वीपों में से मध्य के अढ़ाई द्वीपों में मनुष्यों के निवास स्थान हैं। वहाँ सभी भरत व ऐरावत क्षेत्रों में रहट-घट न्याय अथवा शुक्ल पक्ष के समान उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी आरक (कालचक्र) का क्रम से परिवर्तन होता रहता है।
ज्ञाताधर्मकथांग में अग्रांकित द्वीपों का उल्लेख मिलता हैजम्बूद्वीप
ज्ञाताधर्मकथांग की विभिन्न कथाओं में जम्बूद्वीप का नामोल्लेख मिलता है। जैन भूगोल के अनुसार यह जम्बूद्वीप सब द्वीप-समुद्रों में आभ्यन्तर है। समग्र तिर्यक्लोक के मध्य में स्थित, सबसे छोटा और गोल है। अपने गोल आकार में यह एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इसके चारों ओर एक वज्रमय दीवार है। उस दीवार में एक जालीदार गवाक्ष है। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित- ये चार द्वार हैं।"
मध्यलोक में सबसे पहला जम्बूद्वीप है जो हिमवंत, महाहिमवंत, निषध, नील, रूक्मि और शिखरी- इन छ: वर्षधर (सीमाकारी) पर्वतों के कारण भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत नाम के सात क्षेत्रों में विभाजित हैं। इन छ: वर्षधर पर्वतों से गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितांसा, हरि, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारीकान्ता, नरकान्ता, सुवर्ण कूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तवती नाम की चौदह नदियाँ निकलती हैं। जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु पर्वत है और
और जम्बूद्वीप को घेरे हुए लवण समुद्र है। रत्नद्वीप
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार संभवतया लवण समुद्र के अंदर जो द्वीप हैं, उन द्वीप प्रदेशों में रत्नद्वीप भी एक है। यह रत्नद्वीप अनेक योजन लम्बा-चौड़ा और अनेक योजन घेरे वाला था। इस द्वीप की यह विशेषता थी कि यह अनेक
71