Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन मिलता है ।222 गवाक्ष के लिए जालगृह शब्द भी आया है।23 चित्रकार ने मल्ली के पैर का अंगूठा जाली में से देखा और मल्ली का सम्पूर्ण चित्र बना दिया।24 प्रमदवन
भवनों में प्रमदवन (क्रीडोद्यान) बने होते थे। उन उद्यानों में चित्रसभा, नाट्यशाला आदि भी बनी होती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि मल्लदिन्नकुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को अपने प्रमदवन में एक बड़ी चित्रसभा निर्मित करने का आदेश दिया।25 तेतलिपुर नगर के बाहर भी ईशानकोण में प्रमदवन नामक उद्यान था। मण्डप
मण्डप से तात्पर्य ऐसे मचान से होता है जिसके चारों तरफ स्तम्भ होते हैं और उसके ऊपर बने मचान पर बैठा जाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में अग्रांकित प्रकार के मण्डपों का उल्लेख मिलता हैi. लतामण्डप : उद्यान के मध्य में लतामण्डप का उल्लेख हुआ है, जिसमें
दो सार्थवाह देवदत्ता गणिका के साथ घूम रहे थे, क्रीड़ा कर रहे थे।226
स्थूणामण्डप : यह संभवतया वृक्ष की लकड़ी से निर्मित एक मण्डप ___ होता होगा, जिसके चारों ओर वस्त्र लगाकर उसे आच्छादित किया जाता
था।27 देवदत्ता गणिका के साथ दो सार्थवाहों के स्थूणामण्डप में क्रीडा करते हुए विचरण करने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है।28 पुष्पमण्डप : ज्ञाताधर्मकथांग में पुष्पमण्डप का उल्लेख मिलता है, जो वनखण्ड में होते थे। पुष्पमण्डप में विविध प्रकार के पुष्प होते थे। वहाँ पर लोग भ्रमण करके आनन्द लेते थे। पुष्पों की महक से मण्डप महकता
रहता था।29 पुष्पमण्डप को एक स्थान पर पुष्पगृह भी कहा गया है।230 iv. वल्लिमण्डप : ज्ञाताधर्मकथांग में वल्लियों अर्थात् बैलों के मण्डप का भी
उल्लेख मिलता है।31 जिस मण्डप के चारों ओर बेलें लगी होती थी, वह वल्लिमण्डप कहलाता होगा। स्वयंवरमण्डप : स्वयंवर विधि से होने वाले विवाहों को सम्पन्न कराने के लिए एक विशेष प्रकार का मण्डप तैयार किया जाता था, जिसे स्वयंवरमण्डप नाम दिया गया है। इसमें अनेक प्रकार के स्तंभों से युक्त मंच बने होते थे, जिन पर आगन्तुक राजकुमार अपने-अपने आसन पर
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iii.
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